"मची खलबली"
घिरे बादलों की
भूख बस यही है
ज़मीं भीग जाए
कमी बस यही है
घिरे घनघोर बादल
उमड़ ही रहे हैं
जिन्हें देखकर दिल
में मची खलबली है
आशाओं की किरणें
हिलोरें भर रहीं हैं
मन की मनोदशा
शिथिल हो रही है
मेरी साँस रूकती
बिखरती जा रही है
लगा जैसे मेरी साँसे
बारिश की बूँदों से
जुड़ती जा रहीं हैं
युवा कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
भारत
+91 9454434161
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