आज बहुत गुस्से में लिख रहा हूँ ...
जब हम कोरोना कोरोना जैसे शब्द अपने आस-पास के परिवेश में सुन रहे थे और उससे बचाव भी कर रहे थे,बचाव के लिए लोग अपने-अपने घरों में कैद हो चुके थे,कई प्रकार के बचाव के तरीके अपना रहे थे,सड़को, गलियों में सन्नाटा पसरा हुआ था,आज वो दिन था रविवार का जिस दिन एक परिवार बहुत दिनों बाद एकसाथ बैठा था अपने के बहुत करीब था वो दिन कोई ऐसे वैसे नहीं बल्कि एक सम्भावित भारी महामारी की वजह से आया था
जिसकी असली कारण कोरोना वाइरस था। सबसे बड़ी बात कि आज भारत बंद था।
जब हम अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रहे थे,तब मेरे देश के जवान अपने आपको दुश्मनों को मुँह तोड़ जवाब देते हुए उनका सामना कर रहे होते हैं उनसे लड़ते-लड़ते अपनी माता भारती की गोद में सो जाते हैं।तब ऐसा प्रतीत होता है मानों कोई मासूम सा बच्चा अपनी माँ की गोद में हँसते-हँसते सो गया हो।
ये सब होता रहा देश में और हम एक कोरोना के चक्कर में वक्त जाया करते रहे।
अब मैं भारतीय हुकूमतों से प्रश्न करता हूँ कि आखिर जब भारत बंद था फ़िर ये सब कैसे हुआ l
साहब! बात सत्रह जवानों के शहीद होने की तो है ही लेकिन ये बात उनकी भी है जिनकी फोटो तक भी अखबार नहीं छपती है, जिनकी खबर भी हफ़्तों नहीं छपती जबकि वही हैं मेरे देश असली हीरो l
नेता जी बात मात्र संवेदना व्यक्त करने की नहीं है
बात मात्र सत्रह परिवारों की नहीं है
बात मात्र सत्रह पिताओं की नहीं है
बात मात्र सत्रह माताओं की नहीं है
बात मात्र सत्रह स्त्रियों की नहीं है
बात मात्र सत्रह सूने माथों की नहीं है
बात मात्र सत्रह बाहनों की नहीं है
बात मात्र सत्रह भाईयों की नहीं है
बात है तो मात्र शहीद जवानों के बेटों और बेटियों की,उनके उम्मीदों की है।
शिवम अन्तापुरिया उत्तर प्रदेश
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