"इत्तेफ़ाक"
सैजला बिल्कुल एक सीधी-साधी लड़की थी,जिसे सब कुछ अच्छा लगता है सिवाय नफ़रत के,ऐसा भी कुछ नहीं था कि उसे सब कुछ प्यार ही दिखता हो बल्कि उसे खुद अपने आप से ही बहुत प्यार था फ़िर उसकी जिंदगी में किसी और के आने का हक़ कैसे हो सकता था,लेकिन ये जिंदगी किसे,कब,कैसे,कहाँ लाकर खड़ा कर दे कोई नहीं जानता कुछ ऐसा हुआ था सैलजा के साथ वो अपनी जिंदगी बड़े सुकून से जी रही थी न किसी की फ़िकर, न किसी का डर, हाँ ऐसा ही होता है, जब हम बिल्कुल अपने आप को फ़्री फ़्रीडम कर बैठते हैं, मगर जिंदगी में जिस पल से प्यार शब्द उग आता है उसी दिन से सारा सुकून एक उल्फ़त में बदल जाता है हाँ कुछ ऐसा हुआ था सैलजा के साथ क्योंकि जब हम प्यार की राह पर चलने लगते हैं तो तब हमें खुद पर भी खुद का अधिकार नहीं रह जाता है,शायद इसी को दुनियाँ सच्चा प्यार कहती है, आज सैलजा अपने कॉलेज कोई अपने निजी काम से नहीं बल्कि अपनी फ़्रेंड निया के जबर्दस्ती करने पर गई थी, क्योंकि सैलज़ा आज के एक साल पहले ही वो काॅलेज से पढाई करके पास आऊट हो चुकी थी,आखिर अब वो क्यों जाती है पुरानी यादों में लौटकर खुद की आंखों में नमी लाने क्योंकि पढ़ाई के दिनों में ही उसे अपने जिस प्यार पर भरोसा किया था उसी में धोखा मिला था, सैलज़ा तभी से इतनी सीधी और सरल हो गई थी, क्योंकि अब वो उस राह पर नहीं चलना चाहती थी,लेकिन निया की बात भी वो कैसे टाल सकती थी क्योंकि वो हर बात निया को बताए बिना नहीं रह पाती थी, आखिर निया के साथ सैलज़ा जाने तैयार हो गई, निया ने जैसे ही काॅलेज के अन्दर अपने कदम रखे उसे बीता कल अपना याद आने लगा, सैलज़ा अपने पिछले प्यार में कोई चेहरे पर शांति का मुखौटा ओड़े अपने आप खोई हुई धीमे कदमों से जा रही थी वो पुरानी यादों में इतनी मशगूल हो गई कि सामने आते सुभाष का उसे आभास तक न हुआ और उससे टकरा गई दोनों ने बिना गुस्सा किए एक-दूसरे को बड़े ही प्यार के भाव से देखा अब ये समझो कि सुभाष और सैलज़ा नहीं टकराए थे बल्कि दोनों दिल एक दूसरे से मिले थे अब ऐसा प्रतीत हो रहा था इसे इत्तेफाक ही समझो कि आज वैलेन्टाइन डे था
इसे कहते हैं प्यार का अन्जान रास्ता होता है वो पहली ही क्षण मात्र की मुलाकात में एक-दूसरे के ऐसे हुए की बात साथ जन्मों तक के रिश्ते में बंध गए,
ऐसे होता है प्यार क्योंकि प्यार कभी भी उम्र का,जाति का,धर्म का या धन का मोहताज़ नहीं होता जो सच्चा प्यार होता है,आखिर ये इत्तेफ़ाक ही तो था
वो क्यों जाती निया के साथ जब वो सब भूल चुकी थी ये संयोग था क्योंकि उसका प्यार उसे पुकार रहा था आज फ़िर इस वैलेन्टाइन डे पर दो अजनबी दिल एक-दूसरे के आधीन हो गए और बन गया एक और प्यार का रास्ता।
लेखक
शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश