Monday, April 22, 2019

मैं नदी हूँ

शिवम अन्तापुरिया "निर्मोही"

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" मैं नदी हूँ "

सिसकती हूँ, मचलती हूँ,
कई मौकों पर गरजती हूँ,
उलझती हूँ फिर भी हर रोज मंजिल की तरफ बढ़ती हूँ,
मैं नदी हूँ...
कभी किनारों पर, कभी गहरे दरियों पर,
हर रोज नए लोगों से मिलती और बिछङती हूँ,
मैं नदी हूँ...
पता नहीं मेरा प्रेमी मुझसे छूटा है या रूठा है,
उसी की तलाश में मेरा
हर पल बीता है,
रात-दिन की बिन परवाह किए मैं अकेली ही बहती हूँ,
    मैं नदी हूँ...
कहीं कल-कल की आवाज तो कहीं छल-छल की आवाज
मैं सुनती हूँ,
फिर प्रेमिका की तरह
खुद से ही लरजती हूँ,
मैं नदी हूँ...

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