मुक्तक
पत्थरों से टूटा था
मन मेरा
हर खुशी को समेटे
था तन मेरा
सहजकर रखी थी
चुनौती तेरी
अब रूठ क्यों
गया है
दिल मेरा
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1- एक नहीं हज्जार नहीं
लाखों से वो लङते गए
जीत गए जब जंग बङी
तब वो भारत माँ की गोद में सो गए,
तेरे कदमों के आने से
मेरे कदमों के जाने के
बनें जो पग जमीं पर हैं
निशाँ हैं वो मिटाने के
2- रणवाँकुणे
वो तो रणवीर वाँकुणे थे,
जिनको राणा कहते थे
लाखों दुश्मन से लङने की,
अकेले हिम्मत रखते थे
तूफान सा तेज चेतक में था
उनके हर वार पे दुश्मन मरता था
तीव्र तेज था भाले का,
जिससे दुश्मन का
सीना, मस्तक फटता था
था चेतक में अदम्य साहस
जिससे दुश्मन भय खाता था
रण में चेतक जहाँ ठहरता था
वहाँ सून सान हो जाता था...-2
3- वीर राणा प्रताप
वीर राणा के भाले से,
दुश्मन मात खाते थे
वही राणा के वंशज
आज भी भारत भूमि पे जिंदा हैं...
जरा तू होश आ दुश्मन
नहीं मिट्टी मिला देंगे
हम राणा के वंशज है
तुम्हें मरना सिखा देंगे
1- ..............
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। जातिवाद पर कुछ व्यंगरूपी शब्द ।
लगा दो जाति का लेबल
लहू की बोतलों पर तुम...
फिर देखो कौन न लेगा
दिखाएगा यहाँ पर दम...
जब खून ले लोगे
तो फिर...
कंधे भी मिले हरदम
बचाने प्राणों को अपने
तोङ देते हैं मर्यादा हम
इसलिए मैं कहना चाहूँगा
ये संसार के सभी इंशानों से
कि
तोङ दो जाति का पहरा
निभाओ इंशानियत का धर्म
यही है सार दुनियाँ में
जिसमें होते जा रहे हैं गुम हम...
भीङ है जातिवादों की
जिससे घिरे हैं अकेले हम
जिससे निकलना है मुश्किल
जिस पर बोलना भी होता
जा रहा है
2- .............
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आसान नहीं आजादी ये
ऐसे ही आजाद नहीं हुए हैं हम
कई बार बिन कफन के
दफन हुए हैं हम...2
किसी का मिट्टी का कफन था
किसी का आसमाँ ही कफन था
किसी का पानी ही कफन था
और
किसी का दफन होना ही कफन था
कौन हमदर्द था और बेदर्द था
ये जानना भी मुश्किल था
3- ................
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ओज पूर्ण मुक्तक
तेरे कदमों के आने से
मेरे कदमों के जाने के
बनें हैं पग जमीं पर जो
निशाँ हैं वो मिटाने के ,
बंधन तोङकर आना तेरा
मुझको भी भाता है
लिपटकर बाँहों में खोना
तेरा मुझको भी आता है ,
मगर ये साँवली सूरत से
मेरा कैसा नाता है
जीना और न जीना
तेरा रिश्ता मुझसे
पुराना है
तुझसे चहकती गलियों में
मेरा अब भी आना जाना है।
कोई मिलने को रोता है
कोई मिलकरके के रोता
एक प्रेमी की धङकन को
तो बस प्रेमी समझता है।।
4- ............
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प्रेम व्यंग्य
प्रेम भयो मोह मोह भयो
जो चंदन चौकी डाल गयो
देख दशा मेरे तन मन की
मेरे शीतल आग लगाए गयो
मन खिन्न भयो दिल भिन्न भयो
मोह बीच राह में छोङ गयो
ये रीति-रिवाज न मानें कभी
न जाति-पाँति की बाँध रहयो
.....
ये आँखन आँखन से प्रेम भयो
जाने दिल को बसेरा बनाए लियो
निर्मोही कहें इस दुनियाँ में
बङो भाग्य भयो
जो तुमको मुझसे प्रेम भयो
प्रेम की डोर है बहुत बङी
जो उलझी-उलझी अब सुलझाए रहयो
निर्मोही मोह में फँस है गयो
अब निकलने की राह है ताक रहयो
प्रेम विरह की वेदना ने,
सबका सबकुछ छीन लियो
ये माधव मुरली बजैया ने,
दुनियाँ में विरह को
कीटाणु फैलाए दियो
ये गाए बनै, न खोए बनै
कैसी विपदा भारी डाल गयो
कुछ दिन मन में डेरा डाल गयो
फिर धीरे-धीरे भाग गयो
शिवम
हाथ छुङाए से छूट गयो
फिर भी शिवम दिल न उनसे दूर भयो
5- ..........
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। व्यंग्य ।
व्यंग्य कोई फुल्लङ बात नहीं है
जबकि ये दुनियाँ का हकीकत में कङुवा
सच होता है जिसे स्वीकारने से लोग कतराते हैं
व्यंगकार की व्यंग्य जमीं पर व्यंग्य बीज बो देंगे हम
हम सच्चे हिन्दुस्तानी हैं सीना फाङ तिरंगा दिखला देंगे हम
6- ...............
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मैं आज आप लोगों को आधुनिक पति-पत्नी के बीच की तल्खियों को सुनाने जा रहा हूँ, जब कोई पती -पत्नी के बीच झगङा हो जाता है, दोनों अपनी-अपनी जिद पर अङे रहते हैं, एक-दूसरे की महज बात को सुनने को तक में भारत-पाकिस्तान की सीमा की तरह बम विस्फोटक हालात जन्म ले लेते हैं।
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फिर भी एक दिन पति अपनी पत्नी से प्रेम पूर्वक शब्दों में कहता है
कि श्री मती जी.....
बिन देखे तुम्हें रह नहीं सकते, आँशू रो रो बहते हैं...2
महज मनाने को तुमको, हमें बर्तन धोने पङते हैं...2
एक साल तो ठीक गई, अगले में तुम विफर गयीं
घर आँगन का काम सारा, मेरे सिर पे छोङ गयीं
बङे घरों की तरह तुम्हारे, हालात नजर मुझे पङते हैं...2
कैसा नसीबा है ये मेरा, जो बीवी बनकर रहते हैं
सुबह से लेकर शाम तक, सारे फरमान बजाने पङते हैं...2
लगता उसूल यही है कलयुग का, बीवी को पति बनाना होगा...2
रोज सुबह-शाम की झंझट से, खाना भी मुझे बनाना होगा...2
इतने में भी जो न बात बनें, तो कल से कपड़े भी धो दूँगा मैं...2
बस रोज सुबह उठकरके तुमको( एकबार) प्रेम से पति देव कहना होगा...2-2
इसलिए मैं भारत भूमि की नारी शक्ति के चरणों में कोटि-कोटि बार नमन करता हूँ1
नारी जाति कोमल भई, मानुष भयो कठोर
नारी के सद्भाव से शिवम को भन भयो चितचोर
अहि के काटे चढत है ये चितवत चढ़ जाए
नारी की बोली गोली से घायल देती बनाए
इसीलिए कबीर जी ने भी कहा है
नारियों के लिए ...
नारी की झाईं पङत अंधे होत भुजंग
और
कबिरा उनकी क्या गति जो नित नारी के संग
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