Saturday, March 16, 2019

संगम है

मैं दादा श्री प्रकाश जी को कुछ पंक्तियां
समर्पित करता हूँ
फ़िर आगे बढ़ता हूँ

आप जिओ हजारों साल
ये दुआ हमारी है
तुम्हें सारी दुनिया करे प्रणाम
ये दुआ हमारी है
आप साहित्य के बनो चिराग
ये दुआ हमारी है •••®^

दादा प्रकाश जी तो उस प्रकाश स्वरूप (दीपक) की     भाँति हैं
     जिनकी दुश्मनी हमेशा अंधेरे है
फ़िर भी हवा बेवजह ही उनके खिलाफ़ है

देश तुझको कर रहा हूँ
मैं अपना जीवन समर्पित
भूलवश जो रह गया हो
कर दूँगा वो भी समर्पित
गर जरूरत पड़ी देश को
मेरे लहू की
तो कर दूँगा रगों का
लहू भी समर्पित
हैं समर्पित, हूँ समर्पित
और रहूगा भी समर्पित

शायर
इश्क के एक्शिडेन्ट में दिल टूट कर
विकलांग हो गया
सफ़र में साथ था जो दिल वो
मालामाल हो गया

ओस की बूदो से प्यास बुझती नहीं प्यारे
अब इश्क भी ओस सा ही बन गया है प्यारे
.......
बिछड करके मोह्ब्बत में तुम
मुझसे दूर न जाना
कसम तुमको तुम्हारी है
उसे भी भूल न जाना

शायर..
तेरे लाखों दिवाने हैं, जिसे मैं भी समझता हूँ,
मगर मैं तो अकेला हूँ
खुद ही खुद का दिवाना
....
   दिलो. के शाहजादो को सावधान क्या करना
चढ़ा हो तीर प्रत्यन्चा पर उसे तरकस में क्या रखना

सफ़र है ये मोह्ब्बत का अधूरा छोड़ न देना
टूटते ही बिखर जाना दिलो की आदत पुरानी है

शायर...
**मिलकरके मिलते ही जाने से 
मोहब्बत बढ़़ती जाती है
जरा हों प्यार के गर शब्द,
तो समन्दर भी दरिया बन जाती है ##

तुम सूरज हमारे हो, मैं चन्दा तुम्हरा हूँ 
तुम दिन के आशिक हो
   मैं रजनी का प्यारा (सौहर) हूँ

शायर...
जो दरिया न गहरा हो
उसमें नौका से क्या चलना

  इन्तहा दे चुके हो तुम
फ़िर जमाने से क्या डरना

ढेरों मोहब्ब्त मैं तुम्हें लाकर कहाँ से दूँ
मेरा तो दिल अकेला है ,तुम्हें लाखों कहाँ से  दूँ
जबरजस्ती करोगे तुम तो मैं रोनॆ लगून्गा यूँ
अभी तो मैं अकेला हूँ फ़िर लाखों दिल जोड़ लून्गा मैं

मुझे अपनी मोहब्ब्त का, पत्थर न समझो तुम
मैं तो बर्फ़ का टुकड़ा हूँ, मुझे पानी न समझो तुम

मुझे तुम भूल करके भी,कही यूँ भूल न जाना
मेरॆ लम्हा सँजोकरके,अपने दिल,, में बसाना
रहा जिन्दा तो फ़िर होगी, मुलाकत धरनी पर
मेरी तुम श्वाँश बनकरके, बस चलती ही यूँ  रहना

।।।
हुकूमत  बाजों से  नाराज  हूँ मैं

फ़रमान से वृक्षों पर फल नहीं  आते
तलवार से मौसम बदल नहीं जाते
           ।।।

  यहाँ की सोखती रंगत, हवाएँ भर रहीं  मुझमे़ं
चमन रेतों  में खिल जाएंगे, ऐसा कह रहीं खुद में

शायर....
जो बिछड़कर दूर मुझसे है,
       उसका नाम क्या लेना,
जो निगाहों में बसा मेरे,
       उसको याद क्या,
......
बनकर याद मैं उसके,
दिलों में बसने वाला हूँ,
जो है दे चुका धोखा,
उसी को ,
प्यार करने वाला हूँ

कभी पूरब का पश्चिम हूँ
कभी उत्तर  का दक्षिण  हूँ

कभी पश्चिम  का पूरब  हूँ
कभी  दक्षिण का उत्तर हूँ
बस ऐसे  ही•••••

कभी मैं अपने प्रश्नों से
हो जाता निर उत्तर  हूँ

मुझे अपना... बना के... रखना...
मेरी चाहत बचा.. के... रखना...
मैं.. अब जा... रहा... हूँ
अपने आँशू..""छुपा...के"",,रखना

शिवम

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