Friday, December 25, 2020

"यादें चाय की"

_*यादें चाय की*_ 

 _वो बचपन की चाय_ 
   _तोतली भाषा में_ 
   _माँगता वो चाय_ 

 _बचपन की यादों से_ 
 _अजपन की यादों तक_ 
 _दिल भरता है आहें_ 
 _याद करके वो चाय_ 

  _सुबह की चाय_ 
 _वो शामों की चाय_ 
 _यहाँ तक की वो_ 
 _कॉलेज के दोस्तों_ 
 _(पियूष, राघवेंद्र,धर्मेन्द)_ 
 _के साथ बीते कवि के_ 
 _पलों को तरोताजा_ 
   _करती है वो चाय_ 

     _गम में बैठकर_
    _गम को भुलाने_
_में भी अहम भूमिका_
  _निभाती है वो चाय_ 

 _इंतजार करना_ 
 _चाय का घर में_ 
 _इश्क जैसी रश्म_ 
 _पूरी करती है वो चाय_ 

 _शिवम अन्तापुरिया_ 
 _उत्तर प्रदेश_

Tuesday, December 22, 2020

"स्त्री पुरुष के बीच असमानता की खाई अभी भी है"

_"स्त्री पुरुष के बीच असमानता की खाई अभी भी है"_ 

अपने देश में स्त्रियों को देवी का रूप माना जाता रहा है,मानते भी आए हैं लेकिन वर्तमान में हमारा समाज अपने पुरखों के दिए हुए ज्ञान के कसौटी पर खरा बिल्कुल भी नहीं उतर पा रहा है इसमें अगर कमियाँ व्याप्त हुईं हैं तो इसका जीता जागता सुबूत हमारा समाज ही है, समाज ने अपनी भावी पीढ़ी को कहीं न कहीं संस्कारों से वंचित रखा है।

तभी तो देवी स्वरूप स्त्रियों की दशा आए दिन दुर्दशा में तब्दील होती जा रही है और हमारा समाज आज भी अपने मूल संस्कारों से कहीं दूर भटकता चला जा रहा है। आज भी अब भी सँभलने का एक अवसर है जिसे हम गँवाए नहीं भुनाने की कोशिस करें,

देश आजाद हुआ जिसमें किसी एक की भूमिका नहीं थी न कि मात्र देश को ही आजाद नहीं कराना था, अपना मकसद अंग्रेजों से ही आज़ाद होना भी नहीं था 
आजादी भी कई तरीके की थी जिसमें 
किसानों को जमीदारों से,निम्नवर्ग को मध्यम वर्ग से,मध्यम वर्ग को उच्च वर्ग से , आजादी चाहिए थी और स्त्रियों को अपने हक़ और पुरुषत्व की आजादी चाहिए थी। साथ ही साथ उन्हें शिक्षा का भी अधिकार मिले, उन्हें अपने फ़ैसले लेने का अधिकार मिले,

जब बात समानता की आती है तो कई जगह ऐसी हैं जहाँ तक अभी भी स्त्रियाँ नहीं पहुँच पाई हैं भारतीय न्यायालय की बात की जाए को (सी.जे.आई.) चीफ़ जस्टिस आॅफ़ इंडिया के पद पर देश को आजाद हुए सात दशक गुजर रहें हैं लेकिन एक भी महिला इस पद पर नहीं आसीन हो सकी, एक मात्र महिला हाईकोर्ट के न्यायायिक पद तज पहुँची है जिसे आप सब जानते हैं।

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि कई मौके ऐसे आते हैं जब न्यायायिक प्रक्रिया चलती है महिला अपने बयान एक पुरुष जज के सामने वो सटीक बातें नहीं पेश कर सकती है जो एक महिला जज के सामने बोल सकती है खैर ये तो बात अलग लेकिन भारत में उच्च न्यायलय में लगभग 1113 जज हैं जिसमें मात्र 82 महिला जज हैं पूरे भारत में सबसे ज्यादा महिला जजों का औसत हरियाणा और पंजाब में ही हैं।

        सबसे बड़ी समस्या तो तब  खड़ी हो जाती है जब आए दिन देश में स्त्रियों पर अत्याचार होने की खबरें अखबारों में छपती हैं।
वो भी जब तक बात नई रहती है या फ़िर पत्रकार उस बात को उठाते रहते हैं तब तक ही शासन के कानों आवाज़ जाती है और जैसे ही आवाज़ उठानी बंद कर दी जाती है वैसे सब शांत हो जाता है सरकार कुछ भी कानून बनाए लेकिन स्त्रियों की मुझे वही दिखती है फ़िर वो चाहें जो भी राज्य हो, किसी भी सरकार ने अपने किसी भी कानून को भले ही अमली जामा पहना लिया हो लेकिन स्त्रियों की दशा कोई परिवर्तन होता नहीं दिखता है। इस लिहाज़ हमारे समाज़ को एक बार बहुत ही गहराई में जाकर सोचने की घोर आवश्यकता है जिससे कोई न कोई हल अवश्य निकाला जा सके। क्योंकि 

 _हर समस्या का हल होता है।_
_आज नहीं तो कल होता है।।_

स्त्रियों को भले ही पुरुषों के समानता का अधिकार मिल गया हो लेकिन अगर कोई ये कहे की समाज में स्त्रियों को अब हक़ बराबर हो गया है ये मुझे बिल्कुल  नहीं लगता क्योंकि इसमें कहीं न कहीं कोई कमी जरूर छूट जाती है।
    इस बात से भी नकारा नहीं जा सकता है कि स्त्रियों पर होते अत्याचार का जिम्मेदार सिर्फ़ पुरुष ही है इसमें कहीं न कहीं कुछ गलतियाँ स्त्रियों की भी सामने आती रहती हैं। मेरा मानना है कि अगर स्त्रियों को अपने स्वाभिमान को बचाना है तो वो खुद ही इतनी सशक्त बनें कि उनके विरोध में जब कोई खड़ा हो तो वो स्वंम ही विरोधी का सामना करने सामर्थवान होकर उसका सामना कर सकें, सरकारों ने स्त्रियों को हर विभाग में समानता का दर्ज़ा भले ही दे दिया हो लेकिन हर जगह किसी न किसी तरह से इनका शोषण जरूर किया जा रहा है इस बात से भी हमको अनदेखा नहीं करना चाहिए, इन्हें वो आज़ादी अभी तक नहीं मिल पाई है जिसकी इन्हें तलाश थी। स्त्रियों को जहाँ जाना होता उनके दिमाग में एक बात जरूर घर लेती है कि पुरुषों के बीच में मुझे जाना है इस बात की हिचकिचाहट सी रहती है क्योंकि स्त्री को पुरुष के नाम का डर सा भर गया है जो कि सही भी है ( ऐसा कभी भी कोई पुरुष को भी महसूस होता है क्या कि मैं स्त्रियों के बीच में जा रहा हूँ ) 
इस नज़रिये से देखा जाए तो ये काम सरकार नहीं बल्कि समाज का खुद ही है कि वो अपनी सोच  में बदलाव लाए स्त्रियों के प्रति हर स्त्री के अंदर ऐसे विचार आने चाहिए जब वो कही भी जा रही हो जैसे कि वो अपने पिता, भाई के साथ जाने में खुद को महसूस करती है अगर ऐसी सोच हमारे समाज में हो जाए तो कभी कोई भी स्त्री पर कोई भी आँच नहीं आ सकती है।
मैं एक बात ये भी कहता हूँ उन लोगों से जो स्त्री के चरित्र पर सवाल उठाते हैं... उनके लिए  कि ये याद रहे पुरुषों को 

 _एक स्त्री को चरित्रहीन बनाने में_ 
 _एक चरित्रहीन पुरुष का ही हाथ होता है_ 
ये भी मत भूलिए 

      मैं पुरुषों से सवाल करता हूँ कि एक 16-20 साल की लड़की जब अपने 5-7 साल के भाई को लेकर सड़क पर निकलती है तो वो अपने आप को पूर्णतया सुरक्षित समझती है जब स्त्री पुरुषों को इतना कुछ समझती है तो हम पुरुषों को भी सोचना चाहिए कि हम भी उनकी रक्षा के लिए नहीं अपनी व समूचे समाज की सोच में बदलाव लाने की मुहिम शुरू करें अगर ऐसा एक बार हो गया न तो मुझे अपने बहन बेटियों की कभी भी सुरक्षा करने जरूरत नहीं पड़ेगी।

        लेकिन समाज में हमेशा कोई न कोई अपवाद जन्म लेते ही रहते हैं इसलिए मेरी तरफ़ से स्त्रियों को एक सलाह या शिक्षा है जिसको स्त्रियाँ जरूर अपने अंदर बैठा ले कि हर पुरुष पर आधुनिक युग में पूर्ण विश्वास साधारणतया नहीं कर लेना चाहिए क्योंकि 

दुनियाँ के हर व्यक्ति का चरित्र इस प्रकार अलग-अलग होता है।
जैसे बंदगोभी के हर पत्ते का स्वाद अलग-अलग होता है ।।

ये मानता हूँ कि हर कोई स्त्री रानी लक्ष्मीबाई,अवन्ती बाई नहीं बन सकती ।
लेकिन कितने समय कौन किसका रूप धारण कर ले ये भी नहीं कहा जा सकता ।।

 _शिवम  "अन्तापुरिया"_
     _कानपुर उत्तर प्रदेश_ 

  _+91 9454434161_

Monday, December 7, 2020

"खड़े हैं द्वार सुनो किसानों की पुकार"

"खड़े हैं द्वार सुनो किसानों की पुकार"

किसानों को इतने दिन हो गए हैं वो अपनी मांग को देकर दिल्ली पहुँच रहे हैं और सरकार उन्हें बरगलाती जा रही है कि हमने कुछ गलत किया नहीं है किसान कानून बिल्कुल सही है, मैं पूछना चाहता हूँ आखिर सरकार को कौन सी आपत्ति है जब किसान नहीं चाहते कि ये बिल लागू हो उन्हें कुछ न कुछ तो दिक्कत है ही इस कानून से तब तो वो इसका विरोध कर रहे हैं, "अगर सरकार किसानों के हित की ही बात करती हैं तो कानून को तत्काल प्रभाव से वापस ले और किसानों को उनके ऊपर छोड़ दे ये मेरी सलाह है सरकार को"
अगर ये वापस लेने में सरकार को ये लगता है कि मेरी थू थू होगी देश हँसाई होगी तो उसके लिए भी मैं उपाय ये बता रहा हूँ ।
'सरकार कहती है कि हम  बिचौलियों को खत्म करना चाहते हैं'

किसानों के बीच से हाँ आप हकीकत में अगर  किसानों के बीच से बिचौलियों को हटाना ही चाहते हैं तो फ़िर पेट्रोल,डीजल,कच्चे तेल से भी बिचौलियों को हटा दो तो किसानों का हित भी हो जाएगा आपका कानून भी हम स्वीकार कर लेंगे अगर ये आप कर देंगे तो पेट्रोल का मूल्य 32₹ से 35₹ हो जाएगा क्योंकि सरकार पेट्रोल बैरल में खरीदती है एक बैरल में 159 लीटर होते हैं और 54.58 डालर/बैरल में पेट्रोल को भारत खरीदता है अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पेट्रोल का मूल्य क्या चाहिए। 
  _"पेट्रोल का मुल्य कम्पनियां तय करती हैं ये सरकार का कहना है तो फ़िर किसानों के अनाज का मूल्य सरकार क्यों तय करती है"_ 

ये मनमानी कब तक चलाएगी सरकार जिस राज्य में चुनाव होता है तो कोरोना खतम चुनाव होते ही कोरोना बढ जाता है।


जल्द ही बिल से बाहर निकले केन्द्र सरकार ये मूषक की तरह छुपने से काम नहीं चलने वाला 
अन्दर बैठ कर ये कहना आसान है कि ... "कृषि कानून में संशोधन जरूरी, हम समपूर्णता से कर रहे संशोधन" 
ये बात भाती नहीं है जरा भी कि आप किसानों की बात सुनने से पीछे हट रहे हैं और संशोधन की बात करने लगे क्यों संशोधन जरूरी अगर बिल सही है आपका, सुधार उसमें किया जाता है जिसमें गलती होती है 
अब ये तो आपने ही स्वीकार कर लिया कि ये कानून गलत इसलिए किसानों की बात मानों और कानून वापस लो ।

अब बात करता हूँ पुलिस फ़ोर्स की...मैं सवाल करता हूँ पुलिस से कि आप जिन किसानों को आन्दोलन करने से रोक रहे हो 
यही किसानी परिवारों में आपने भी जन्म लिया है, कई पुलिस कर्मियों का ताल्लुक़ किसान परिवारों से है यही किसानी के खून पसीने के पैसे से ही पढ कर आप इस ओहदे पर हैं फ़िर भी आप अपने ही पिता समान किसानों पर लाठियां ,गोले, पानी बरसाते हो जरा भी शर्म नहीं आती, जबकि तुम्हें तो अपने किसानों का साथ देना चाहिए "चन्द पैसे के लालच में अपनों के ही खिलाफ खड़े हो उनका रास्ता रोके"
अगर आप साथ दें तो जरा भी वक्त नहीं लगेगा सत्ता को किसानों की बात मानने में 

मेरा फ़िर से एक आग्रह है देश के प्रधानमंत्री महोदय से 
कि इस सर्दी और अनसन में किसानों की मौत आंकडा बढे उससे पहले उनसे मिलिए और आन्दोलन को समाप्त कराइये ।

   कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश

आए हैं द्वार

"आए हैं द्वार"

खड़े हैं द्वार पर आकर 
जो सबके अन्नदाता हैं
नहीं ठुकराओ तुम इनको
 तुम्हारे प्राण दाता हैं
अनाजों के बिना तुम एक 
कदम भी चल नहीं सकते 

समय ये आज तेरा है समय 
कल इनका आएगा
 क्यों सुनते नहीं आकर 
 अब तुम दर्द हो इनका
 जिन्हें तुम शान से 
कहते थे मेरे अन्नदाता हैं 

कवि शिवम यादव 
अन्तापुरिया कानपुर 
उत्तर प्रदेश 
+91 9454434161

हैं राहें

_"हैं राहें"_ 

वो मुस्कुराहती राहें 
वो कुछ बताती राहें 
वो राहें दिखाती राहें 
मुझे अपना बनाती राहें 
तुझे अपना बताती राहें 

 जरा सी शर्माती हुई राहें 
 कुछ वो हिलोरें लेती राहें 
कुछ मन्ज़िल दिखाती राहें 
थीं कुछ हिचकिचातीं राहें 
   मुझे वो छेड़ती राहें 


किसी को हँसाती राहें 
किसी को रूलाती राहें 
किसी को तड़पाती राहें 
किसी को बुलाती राहें 
किसी को सिखाती राहें 
किसी को इठलाती राहें 

   वो हैं बहुरूपी राहें 
कभी बन्ज़र, कभी खन्ज़र 
  कभी हैं मोम की राहें 
कभी प्यासी, कभी भूखी 
   कभी हैं टूटती राहें 
कभी प्यारी, कभी न्यारी 
   कभी हैं बेरूखी राहें 
 कभी यादें, कभी भूली 
 कभी गुज़रती वो राहें 
कभी प्रेमी, कभी दुश्मन 
  कभी हैं प्रेमिका राहें 
कभी नफ़रत, कभी चाहत 
  कभी हैं ढूँढती राहें 
कभी साहस, कभी राहत 
   कभी तूफ़ान हैं राहें 
कभी वो दिन, कभी रातें 
  कभी हैं चाँदनी राहें 
कभी सुबहा, कभी शामें 
  कभी दोपहर हैं राहें 

   _शिवम अन्तापुरिया_

"आपदाओं का सैलाब"

"आपदाओं का सैलाब"

किसानों की कथित पीढा सुनाने 
आज आया हूँ 
बने जो जख्म से नासूर दिखाने उनको आया हूँ 

बड़ा बेदर्द है शासन, सुनना कुछ भी नहीं चाहता 
केवल अपनी ही बातें सुनाना उसको है आता
 
कहीं भाषण,कहीं नारे, कहीं पर रैलियाँ देखीं 
सूखी कृषकों के घर की नहीं हैं रोटियाँ देखीं 

किसानों की यही पीढा मेरे आँसू बहाती हैं 
बहुत देखा है आँखों ने, नहीं अब देख पातीं हैं 

कभी ओले, कभी बारिश, कभी तूफ़ान आता है 
बेमौसमी आपदाओं का यही सैलाब आता है 

किसानों का मुखर चेहरा बड़ा मायूस रहता है 
नेताओं का दिया, भाषण जब भाषण ही रहता है 

   युवा कवि 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश