Thursday, July 16, 2020

"अकेली नहीं" कहानी शिवम अन्तापुरिया

"अकेली नहीं"

बादलों की गर्जन और बिजली की चमचमाहट के नीचे बैठी स्वरा   बिल्कुल ही निडर भाव के साथ एक टक लगाए बैठी थी, उसे डर होता भी तो किसका जब उसे  कोई आजतक अपनेपन का अहसास ही नहीं हुआ था, बेचारी स्वरा अब तक अपनी जिंदगी में कई पहलुओं के साथ गुज़र चुकी थी लेकिन फ़िर भी उसका भाग्य कि वो हज्जारों हज़ार की भीड़ में भी अपने आपको हमेशा अकेला ही पाती थी l वो आजतक अकेली ही थी उसे पास सिर्फ़ तन्हाई थी अकेलापन था वो भी अपनी ही थी ये अकेलापन भी उसके ऊपर किसी का अहसान नहीं था क्योंकि ये तन्हाई को उसने खुद ही स्वीकार किया था 
शायद उसने जिंदगी का असली रूप नहीं देखा था कि वो कैसा होता है? क्या होता है? कब, कहाँ  होता है उसे तो केवल अपने आप खोए रहना ही सबसे अच्छा लगता था मगर जिंदगी कहाँ कौन सा बीरान शहर है नहीं पता था 

 1-        ये जीवन एक ख्वाबों,ख्यालों,उम्मीदों,मुश्किलों और उलझनों से भरा शहर है l

कुछ तो आराम से जिंदगी जिया करते हैं 
बाकी पर तो समस्याओं का कहर है ll 

इन सबसे अंजान स्वरा की आँखें उसके पति की आवाज़ से जब खुली तो सुबह आठ बज चुके थे 
स्वरा अब तक ये सब स्वप्न में देख रही थी तभी तो आज पाँच साल के अपने वैवाहिक जीवन में पहली बार पति के जगाने पर जगी थी नहीं तो वो तो खुद ही रोज़ चाय के साथ अपने पति अनवेश जगाने पहुँचती थी l अनवेश ने बड़ी ही तनमयता में पूछा ओह! आज तो तुम अब तक सोई हो मेरा कोई ख्याल ही नहीं, 
स्वरा हिचकिचाते हुए जी कुछ नहीं वो जरा एक सपना...

अनवेश - बड़े प्यार से बोला, गले में हाथ डालकर स्वरा """ सपना मतलब कैसा सपना ... वगहरा वगहरा... 
स्वरा- कुछ नहीं बस यूँ ही... 
इतना कहकर बात को टाल दिया 

अरे वाह आपने भी तो कमाल कर दिया चाय - नाश्ता सब कुछ तैयार कर दिया 
अरे बस मैंने सोचा तुम्हें क्यों जगाऊँ पहली बार तुम मेरे बाद तक सोई हो सोचा तुम्हें कुछ सरप्राइज ही दे दूँ l 

इतना कहकर अनवेश ड्यूटी चला गया 
स्वरा ने अनवेश को बिना बताए तो उस सपने से मुँह मोड़ लिया था लेकिन खुद उसे कैसे भूलती 
क्योंकि ये सपना ही नहीं ये उसकी जिंदगी का कभी हिस्सा हुआ करता था l जब वो अपने आपको दुनियाँ के सभी बँधनों से मुक्त जैसा महसूस करती थी तब वो एक आज़ाद पंछी की तरह आसमान में जी भरकर उड़ाने भरना चाहती थी, लेकिन एक स्त्री होने के नाते अपने माँ-बाप की रूढीवादी उम्मीदों को पूरा करने व समाज में फ़ैले स्त्रियों के प्रति विकारों से खुद व अपने परिवार को बचाने के लिए स्वरा ने वैवाहिक जीवन में ही अपना जीवन देखा और वही उसे अच्छा भी साबित हुआ l इंशान कितना भी सही हो वो दूसरों के दिमाग में जन्म लेने वाले खुद के खिलाफ़ बोले जाने वाले गलत शब्दों को रोक नहीं सकता है  

2- दिल की मायूसी बहुत कुछ बता जाती है 
चेहरे की खामोशी बहुत कुछ जता जाती है 
मगर जब कुछ खोने के लिए नहीं होता है पास 
तब जिंदगी पाने के लिए बहुत कुछ दिखा जाती है 

स्वरा खुद को अकेला रखना चाहती थी और आज वो अपने वही सपने को सपने में ही देख कर दंग रह गई थी 

एक पुरुष का जीवन भर अकेले रहना अलग बात है l 
लेकिन एक स्त्री का जीवन भर अकेले रहना बहुत ही बड़ी बात है ll 

           लेखक 
   शिवम अन्तापुरिया
   कानपुर उत्तर प्रदेश

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