" जमीं आसमाँ "
ये जमीं आसमाँ से यूँ मिल जाएँगे
प्यार में हम तेरे यूँ सँभल जाएँगे
रूत सावन की हो या वसंती चले
मगर हम प्यार के गीत ही गाएँगे
देखना है मुझे अब तज़ुर्बा यहाँ
देखते देखते हम चले जाएँगे
ये जमीं आसमाँ से यूँ मिल जाएँगे
प्यार में हम तेरे यूँ सँभल जाएँगे
प्यार में गर मेरे फ़ूल कलियाँ बनें
हम अँधेरों में रोशन से हो जाएँगे
जगमगाहट भरीं तुमसे नजरें मिलें
बेवज़ह प्यार तुमसे वो कर जाएँगे
ये जमीं आसमाँ से यूँ मिल जाएँगे
प्यार में हम तेरे यूँ सँभल जाएँगे
ये जमीं मिल रही प्यार से है गले
आँखें नम हो रहीं प्यार में अब तेरे
दूर कैसे रहूँ अब जरा तू बता
बिन तेरे हम अकेले बिखर जाएँगे
ये जमीं आसमाँ से यूँ मिल जाएँगे
प्यार में हम तेरे यूँ सँभल जाएँगे
कवि/लेखक
शिवम अन्तापुरिया
कानपुर उत्तर प्रदेश
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