Friday, November 16, 2018

! रिश्वत ! पर कुछ बोल

          ! जनाब !
रिश्वत माँगी नहीं दी जाती है
जब तक अपनी दी हुई रिश्वत से
अपने ही इशारों पर सारे काम
होते रहें,
हम मुँह खोलने की कोशिश भी
        नहीं करते हैं

बङी रिश्वत देने वाला तुम्हारे
काम को रोककर अपना काम
करवा या नौकरी पा लेता है
उस दिन हम रिश्वत का ढिंढौरा
       पीटने लगते हैं

ओ रिश्वत की साए में पलने वाले जनाब
अब जरा अपने दिल पर हाथ
रखिए
कितने योग्य लोग आपकी रिश्वत
के तले अपनी योग्यता साबित
नहीं कर पाए
और आप रिश्वत के दम पर
यहाँ तक चले आए

कितनों के दिल दुखाए हैं आपकी रिश्वत ने
ये आपको नहीं पता
ये हम आम लोगों से पूँछों.....

        
        लेकिन हकीकत ये है
   इस रिश्वत को पालते भी हम हैं
और मिटाने की कोशिश भी करते हम हैं
        पोषते भी हम हैं

इसको बलवान भी हम बनाते है
जिस दिन रिश्वत की छुरी खुद पर
    चल जाती है उस दिन इसे
       कोशते भी हम हैं

      रिश्वत अच्छी भी है
          खराब भी है
     बेबुनियाद भी है
और हाँ रिश्वत एक फरियाद भी है
जब मुझपर कोई झूठा अपराध दर्ज
    किया जा रहा होता है
तब ये न्याय पाने के लिए रिश्वत ही काम
          आती है
      तभी मैं कहता हूँ ,
पालते भी हम हैं पोषते भी
            हम हैं
लेखक:-
~ शिवम यादव अन्तापुरिया
   रिश्वत पर बोल के साथ पेश हैं....

हम शेरों के घाव

हम शेरों के ये घाव होते ही रहते हैं

          जिन्हें भरते नहीं वो भर ही जाते हैं

युद्धवंशी हूँ सामर्थ युद्ध का जिगर में है

    हाथों में जंजीरें भी हो तो भी लगता है

          कि धागों की गिरफ्त में हैं 
यही तो बहादुरी हम यादवों के फितरत में है

Saturday, November 10, 2018

इश्क है उसे

मेरे हालात से क्या होगा
  बिखरे अलफाज हैं उसके

चंदन समझ करके मिट्टी को
माथे पर तिलक है उसके

सच्चा गवाह था एक ही मेरा
हजारों झूठे गवाह हैं उसके

    करूँ क्या आरजू मंन्नत
हजारों बेदर्दी, बेरहम चेहरे हैं उसके

     कहे अन्तापुरिया आज खुद से
चलो तुमको भी मुलाकात करा दें बेहया चेहरे से उसके

~  »शिवम अन्तापुरिया....

वहाँ जाने से

1- मेरे कदमों के जाने से तेरे कदमों के आने से
बने थे पग जमीं पर जो निशाँ से वो मिटाने के

2-न रूकता हूँ न ठहरता हूँ
         बस खुद को समझाता हूँ
दिल चलने को रोकता है
   मगर पगों से चलता चला जाता हूँ

3-दिल से खामोश मन से परिंदा हूँ
          उसे देखूँ जहाँ भी मैं
  उधर उङता सा जाता हूँ
     वो दूरी क्या वो मंजिल क्या
खबर इसकी न होती है
      फिर भी हजारों लोगों में
      उसकी पहचान होती है
आवारा क्वाॅरा हूँ न कोई मतभेद दिल में है
दीवाना न आशिक हूँ बस राही पथिक का हूँ
.................
   ~  शिवम अन्तापुरिया
कुछ पंक्ति आपके समक्ष

कविता शिवम अन्तापुरिया की ठोस कदम न्यूज अखबार में प्रकाशित हुई है

! मैं इंशान हूँ मुझे इंशान बनने दो !
फजीहत में मुझे बर्बाद न होने दो !!

Thursday, November 1, 2018

''किसान'' मजबूर हूँ

मैं मजबूर हूँ
   मैं मगरूर हूँ
क्यों सजा मुझे मिल रही है
      मैं बेकशूर हूँ,

अभी तक प्राकृतिक आपदाओं
से तबाह होता रहा है
अब फसलों पर कहर बरपाया
जाता है
चुनावी रैलियों की आपदाओं से

क्यों सजा मुझे मिल रही है
मैं बेकशूर हूँ

मैं नादान नहीं
     मैं अनजान नहीं
सबकुछ जानकर भी दबंग
      नेताओं के डर से चुप रहता हूँ
मैंने कई ऐसे दृश्य देखें हैं
   नेताओं ने अपने दौलत के बोझ तले
सैंकङो बेगुनाहों किसानों को कुचल डाला है
    जिनकी न कभी अखबार में खबर
                छपती है ??
      न उनका नाम लिया जाता है
क्यों सजा मुझे मिल रही है
     मैं बेकशूर हूँ
                          ~ शिवम अन्तापुरिया
व्यंगात्मक शब्द.....
ऐसे ही बिखरे शब्दों को जोङता रहूँगा....