आसमान झुक गया
मैं दब भी गया
वो आया ही नहीं
मैं सँभल भी गया
हो गया हूँ लाचार
इस मतलबी दुनियाँ से...
I am a Poet & Writer . मैं काव्य-संग्रह और मुक़्तक लिखता हूँ I मुझे लिखने में मज़ा आता है , धन्यबाद I
Wednesday, October 31, 2018
झुक गया आसमाँ
हे भगवान आज मैं हार गया
भगवान कैसी माया है तेरी
समझ न आए मेरी
किसान से दुश्मनी क्या
है तेरी,
खून को पसीना समझ
बहाता हूँ
फिर भी
शायद तुझको फिकर
नहीं मेरी,
यही वजह है तेरी
माया से हार गई
किस्मत मेरी,
बता दो, जता दो मुझे
क्या कोई पाप भी
करता हूँ मैं
मेरे ख्याल से अपना
और भी अनेकों का
पेट पालता हूँ
फिर भी तुझको याद
नहीं रहती मेरी,
रात-दिन का फर्क
भी नहीं पता मुझे
मगर पता नहीं तूने
अब मुझे कौन से
अंधकार में डालने
की फितरत है तेरी,
मगर फिर भी तुझपर
ही उम्मीदें टिकीं हैं मेरी
~ शिवम यादव अन्तापुरिया
9454434161
हे भगवान आज मैं हार गया
भगवान कैसी माया है तेरी
समझ न आए मेरी
किसान से दुश्मनी क्या
है तेरी,
खून को पसीना समझ
बहाता हूँ
फिर भी
शायद तुझको फिकर
नहीं मेरी,
यही वजह है तेरी
माया से हार गई
किस्मत मेरी,
बता दो, जता दो मुझे
क्या कोई पाप भी
करता हूँ मैं
मेरे ख्याल से अपना
और भी अनेकों का
पेट पालता हूँ
फिर भी तुझको याद
नहीं रहती मेरी,
रात-दिन का फर्क
भी नहीं पता मुझे
मगर पता नहीं तूने
अब मुझे कौन से
अंधकार में डालने
की फितरत है तेरी,
मगर फिर भी तुझपर
ही उम्मीदें टिकीं हैं मेरी
~ शिवम यादव अन्तापुरिया
9454434161
Monday, October 29, 2018
माँ है माँ
वो इश्क के मजहबी
Sunday, October 28, 2018
किसान परेशान
अरे हालात न पूछो
मेरे हर पल की बात न पूछो
कैसे खेतों में काम करता है
किसान
दिन भर खून को पसीना बनाकर बहाता है
न फसल भाव में मिलता है
न उसका कभी कोई दाँव होता है
जब भी सरकार को जरूरत पङती है
तब उसको निचोङ लेती है
किसान
क्या यही फर्ज होता है
उसकी जिंदगी में हमेशा
अर्ज ही होता है
चाहें भगवान से हो या इंशान
फिर भी कोई नेता उसको
इज्जत देने की बात क्यों नहीं करता है
~ अन्तापुरिया
Saturday, October 27, 2018
जिंदगी नब्ज है
ये जिंदगी तो हाथ के नब्ज
की भाँति है
जो शरीर में होते हुए भी
दिखने में गायब हो जाती है
'
~ अन्तापुरिया
इश्क है उसे
अजीब सा इजहार करती है वो
जरा मुझे देखकर खुद से
कुछ करार सा करती है वो
मगर मैं सबकुछ जानकर भी
अनजान सा
गरजता सा हूँ
बस उसकी उसी डरावनी
सी मुस्कान पे मरता हूँ मैं
लगता है चंद दिनों का मेहमान है वो
इसी लिए उसकी हर ख्वाहिश
को पूरी सी करता हूँ मैं
क्योंकि इश्क के समुन्दर में
शायद के साथ ही रहती है वो
~अन्तापुरिया
वो दिन
मैं भूल चुका था वो दिन
मुझे न याद था वो दिन
घाव पर नमक सा झिङकने
के लिए
शायद उसने याद दिलाया था वो दिन
मै मजबूर था मैं मगरूर था
मगर तेरे सामने झुकने के लिए
मै बना न था
आज तू जो है
बना रह
मैंने तेरे हालात पर सवाल
बता
किया ही कब था
~ अन्तापुरिया