Wednesday, June 30, 2021

कहानी. "बेख़बर प्रेम"

"बेखबर प्रेम"

जिंदगी आज भी वहीं की वहीं पर किसी का रास्ता देखे जा रही थी मगर इन्तज़ार खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था विभा आज भी उसी मुद्दत और विश्वास के साथ पत्थर जैसी चट्टान की भाँति अपने आप को वहीं जमाए खड़ी थी उसे क्या पता था कि इसका ये होगा, विभा उसकी एक याद को याद कर अपने अतीत से बाहर आने की कोशिस करती ही थी कि उसको ह्रदयावरण में से एक नई परत ऊतर उसकू पीड़ा प्रदान करने लगती लेकिन विभा उन सारी पीड़ाओं को प्रेम की तस्वीर समझ कर अपने आँखों में छुपाती जा रही थी, कभी-कभी उसके मन में नए-नए ख्याल जन्म लेने लगते थे वो चाहकर भी उन ख्वालों अपने दिमाग के निकाल नहीं पा रही थी ख्याल ऐसे आते थे कि विभा अपने प्रेमी नवजोत को ख्यालों की दुनियाँ में लाकर दोषी साबित करने लगती थी जिन आरोपों में नवजोत को वो दोषी करार देती थी और उन्हीं ख्यालों में नवजोत ऐसा कर नहीं सकेगा ये भी ख्याल जन्म ले जाता था जिससे उसे एक सुकून की साँस आती थी ।

      आज विभा उसी पेड़ के नीचे और उसी नदी के किनारे उसी इतमिनान से अपने ह्रदय को गोद में लिए बैठी है जहाँ पहली बार विभा के झील से गहरे नयन नवजोत के नुकीले नयनों में समाकर टकराए थे जिस लम्हें को विभा तो आज तक भी नहीं भुला पाई थी उसे सोच थी तो बस एक बात की क्या नवजोत मेरी याद आती है कि नहीं, क्या नवजोत को ये नदी का किनारा मेरा उनसे प्रेम मिलन अब भी उसी उत्साहितता से याद होगा कि नहीं, आज भी नवजोत मुझे गोद में उठाकर उतने ही प्यार से अपने सीने से लगाकर मुझसे अपने दिल की बातें फ़िर से बताएगा कि नहीं, मेरे दिल की बातें अभी भी वो मुझसे पूछेगा कि नहीं, यही सब सवाल उसे  चारों तरफ़ से घेरे जा रहे थे।
उसे ऐसा लग रहा था मानों वो अकेले लाखों योद्धाओं के बीच अकेले युद्ध कर रही हो ख्वाबों में ही वो सभी को हराए तो जा रही थी लेकिन नवजोत को लेकर उससे वो हारती जा रही थी।

    आज नवजोत पूरे एक साल बाद जिंदगी के उतार चढ़ाओ से जूझता हुआ अपने आप को सँभालता हुआ जी तो रहा था लेकिन मरने से बदतर जिंदगी थी उसकी, न ही खुद को वो मार सकता था और नहीं जिंदगी जीने लायक बचा था नवजोत इधर बिल्कुल बेसुध और निढाल सा हो चुका था उसे खुद का कोई पता नहीं था कि वो क्या कर रहा है, जिस दिन से वो विभा से मिला था अपने आप को जरा भी बिना विभा के सँभाल नहीं पा रहा था लेकिन उसको अपने पारिवारिक और समाज की नज़रों से बचाकर  कब तक विभा को प्यार करता पहले ही दिन की वो मुलाकात जब वो विभा से मिला था तब नवजोत के पिता ने उसे मिलते देख लिया था उसी दिन लौटते ही नवजोत को वो हिदायत दे रखी थी कि अगर आज के बाद उससे मिले तो तुम्हारी खैर नहीं इधर नवजोत अपनी मर्यादा की बंदिशों से बँधा से उधर विभा प्रेम की ज्वाला में खुद जलाए जा रही थी दोनों ही प्रेम की आहुति बनते जा रहे थे लेकिन एक-दूसरे की खबर से बेख़बर थे ।


      ~ लेखक 
शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश

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