कभी वो दिनों की
हैं यादें पुरानी,
रहती थी मेरे साथ
बैठी अपनी जिंदगानी,
कभी विवेक की बातें
कभी विकास की कहानी
बड़ी दिलचस्प होती थी
इनकी हर रवानी
जिससे चिढ़ता था अभिषेक,
उससे वही शब्द कहकर,
सत्यम ने पुकारा,
अब उसके गुस्से का
रहा न ठिकाना
काॅलेज की कितनी
गज़ब है
ये अतीतों की कहानी
चलो आज फ़िर से
बनी ये जुबानी
कभी हास्य का एक
तड़का शिवम (रेडी) का
कहकर शिवम को था
नन्हें बुलाना
थोड़ा मुस्कुराकर वो
कहता था वानी
तेरी ये तो आदत है
जानी ओ मानी
कभी कोई टीचर को
उसको हो चिढ़ाना,
काँटे की तौल हाँपा,
सुदीप का बुलाना
नीरज का पिपरमिन्ट
का यूँ ही लाना,
लाकरके सबके
आँखों में लगाना
शादाब ही ऐसा,
हठीला था सबमें
जिसको था टीचर,
को जाकर बताना
पियूष की बातें मिलती
थीं जिसको
बातें थी वो सबको
मुझको उड़ानी
काॅलेज में जितनी थी
नखरों से भरी कहानी
वो सब अतीत बनें हैं
अब मेरी जुबानी
अनिरुध्द की बातें थी
सबसे ही हटकर
अभी भी याद आती वो
रहतीं हैं कुछ कुछ
चलो आज मिलना हुआ
तुमसे से फ़िर से
पता न कहाँ ये
बीत जाए जिंदगानी
कवि
~ शिवम अन्तापुरिया
उत्तर प्रदेश
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