Monday, January 4, 2021

पत्थर पत्थर

[12/15/2020, 00:09] poet maniss लहर: 31

"पत्थर के पथ"

इन पत्थरों के दिल से पूछो जरा कभी तुम 
क्या बीतती है इन पर उन में जरा ढलो तुम 
ए.जिंदगी के मौला हों ख्वाहिशें जो इनकी 
थोड़ा सा हाथ रख दो इनके भी नाथ हो तुम 

इन पत्थरों की ख्वाहिश जानी नहीं किसी ने 
इनके जहन में क्या है रूबरू होके 
देखो 
पत्थर के पथ हैं पत्थर चलकरके उनपे देखो 
ये आदतें वही हैं जो थी कभी तुम्हारी 

अब आज रूप उनका पड़ता है तुमपे भारी 
ये जिंदगी शिकायत के खत से भर चुकी है 
देखूँ कहीं भी जो मैं दिखती है दुनियाँ सारी 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:01] poet maniss लहर: 32-
       "एक मंजिल"

ये पत्थरों की बातें कोई जो महसूस कर ले 
बिन आँख खोले इनको आँखों में अपने रख ले 
बस बातें कुछ यही है वो भी सवाल कर लें 
ये जिंदगी आवारा आवारा गीरी कर ले

कुछ पत्थरों के साथ एक मंजिल शुरू कर दी है 
मैं तन्हाँ था अब इन्हीं से बातें शुरू कर दी हैं 
अब पत्थरों की बातें बहुत हैं मुझको भाती  
कुछ दिन गुज़ारे संग में अब रह रह के याद आतीं 

 शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 34-
         "यही पत्थरों ने"

यही पत्थरों ने सँभाला मुझे था 
यही पत्थरों ने सिखाया मुझे था 
यही पत्थरों ने बताया मुझे था 
यही पत्थरों ने दिखाया मुझे था 

यही पत्थरों ने हँसाया मुझे था 
यही पत्थरों ने रूलाया मुझे था 
यही पत्थरों ने जताया बहुत था 
यही पत्थरों ने सताया बहुत था 

यही पत्थरों ने चलाया मुझे था 
यही पत्थरों ने निखारा मुझे था 
यही पत्थरों ने गिराया मुझे था 
यही पत्थरों ने उठाया मुझे था 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 33-
      "इंशान हैं पत्थर"

रुतबों का शहर पत्थर 
ख्वाबों का शहर पत्थर 
हिफ़ाज़त का शहर पत्थर 
गुफ़ाओं का शहर पत्थर 

अब दुनियाँ के दिलों में 
भी बसते आज हैं पत्थर 

इरादों का शहर पत्थर 
मुरादों का शहर पत्थर
किताबों का शहर पत्थर 
नवाबों का शहर पत्थर 

      सभी की महफ़िलों में 
भी सजे दिखते हैं अब पत्थर

किसी के इश्क में पत्थर 
किसी के प्रेम में पत्थर
सभी दीवारों में पत्थर 
बनें चेहरों में हैं पत्थर 

अब इंशानियत के पथ 
में बनते इंशान हैं पत्थर 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 29-
  "यादें पत्थर बनीं"

दम न था इतना मुझमें 
 जो हम चल सकें 
लेकर सिर पर रखा 
तुम मेरे देवता बनें 

सपने के ख्वाब वो 
 मेरे दिल में बसे 
तुम मेरे बन गए 
हम तेरे बन गए

हम जहाँ भी गए 
तुम वही पर मिले 
देखते देखते तुम 
अब बदलने लगे 

चलते चलते यहाँ 
आज हम भी चले 
यादें पत्थर बनी 
फ़ूल तुम बन गए 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 35-
   "आज पत्थर"

आज पत्थर मिले 
 चंद फ़ूलों से थे 
दिल मचलते गए 
फ़ूल खिलते गए 

उम्र के साथ हम 
उनमें ढलते गए 
कुछ सँभलते गए 
कुछ बिगड़ते गए 
हम जिंदादिली 
में यूँ ढलते गए 

आज पत्थर भी थे 
 वो चमकते लगे 
जिनको देखे मुझे 
आज सदियों हुए 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 36-

"पिघलना पड़ा"

पत्थरों के सबब मुझको 
लिखना पड़ा 
दर्द उनके मुझे कुछ 
समझना पड़ा 
राह है उनकी बस
हम चले जा रहे 
एक दिन जिंदगी से 
बिछड़ना पड़ा 

रोज गिरकरके उठकर 
सँभलना पड़ा 
हर कदम पर कदम साथ 
रखना पड़ा 
कोशिशें बस अब हम
यही कर रहे 
किस तरह पत्थरों को 
पिघलना पड़ा 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 37-
     "मिट्टी में मिट्टी"

सोच कर राह मेरी 
बदल जाएगी 
दुनियाँ मिट्टी में एक 
दिन यूँ जाएगी 
बस सफ़र पत्थरों का 
ही होगा यहाँ 
जब ये मिट्टी में मिट्टी (मनुष्य)
मिल जाएगी 

दुनियाँ में एक चमक 
ऐसी रह जाएगी (सूर्य)
जिससे पत्थर की चाहत 
उभर आएगी (चमक)
लोग कहने को कुछ भी 
दिखाए यहाँ (पृथ्वी पर)
बस यहाँ तो पत्थर की 
चट्टान रह जाएगी 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 38-

 "खौंफ पत्थरों का"

पत्थर ये कह रहे हैं 
पत्थर यूँ मत समझना 
मेरे भी एक ह्रदय है 
उसको जरा समझना 

न भय रहा तूफ़ाँ का 
न नीर का भी डर है 
सब साथी से मेरे हैं 
चक्षु अश्रु है बिखरता 

 होता कहाँ मिलन है 
 ये कील कंकड़ों का 
मानव को लग रहा है 
क्यों खौंफ पत्थरों का 


शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 40-
         "पत्थरों पर"

सफ़र तो पत्थरों पर 
हमने भी एक किया था 
मैं रम गया कब उनमें 
इसका भी न पता था 

घूमते-घुमाते हम दूर 
जा चुके थे 
नज़रें चुराकर उनके 
हम पास जा चुके थे 

  हाँ देख पत्थरों को 
मेरा मन बिखर रहा था 
वो आए कहाँ-कहाँ से 
सब तन ये कह रहा था 

सफ़र तो पत्थरों पर 
हमने भी एक किया था 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 39- "शिथिल पत्थर"

 ये पत्थरों की मूरत 
बनकर तो कोई देखे 
क्या बीतती है उन पर 
सह कर तो कोई देखे 

बेरंग सी ये दुनियाँ 
अब रंगीन हो गई है 
जिन पत्थरों से रूठे 
उन पत्थरों को पूजे 

होकर शिथिल ये पत्थर
  स्थिर सा हो गया है 
अब कोई नज़र मिलाकर 
थोड़ा तो उनको देखे 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 41-
    "पत्थरों को देखकर"

भूमि में पत्थर पड़े 
या पत्थरों में भूमि है 
है समझना यहाँ सभी 
को कौन किसका रूप है 

रेत से पत्थर बने
या मिट्टी से रेत है 
पत्थरों से पर्वत बने 
या पर्वतों से पत्थर हैं 

  धूल से हैं कण बनें 
या कण बनें ये धूल हैं 
मिट्टी से काया (शरीर) बनीं 
या काया से मिट्टी हुए 

सोचता शिवम रहा 
प्रकृति को देखकर 
खुद ही खुद में खो गया 
इन पत्थरों को देखकर 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 42-
      "सुनो पत्थरों"

यही आरजू है पत्थरों से मेरी 
मुझे याद रखना यादों में मेरी 

कोई तूफ़ान तुमको 
 हरा भी पाएगा 
बनें हम भी पत्थर 
उड़ा वो न पाएगा 

जमाने की ठोकर 
 से जी न चुराना 
यही लोग तुमको 
बनाएँगे कान्हा 

सुनो! ओ जमाना 
 इन्हें न भुलाना 
हो सके जितना भी 
इन्हें काबिल बनाना 

सुनो पत्थरों होगी मुलाकात मेरी 
जल्दी मिलेंगे अब होगी न देरी

 यही आरजू है पत्थरों से मेरी 
मुझे याद रखना यादों में मेरी 

    शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 43-

"पत्थरों की भीड़"

इन पत्थरों की भूमि 
 पर हम घूमते रहे 
   वो देखते रहे 
हम तो सोचते रहे 

पत्थरों की भीड़ में 
  थे हम चल रहे 
कुछ थी चोंटें लगी 
कुछ सबक मिल गए

जिनके साथ चल रहे थे 
  कुछ लोग तो सही थे 
  कुछ लोग तो बुरे थे 
कुछ लोग पत्थरों का 
हाँ लुफ़्त ले रहे थे 

इन पत्थरों की भूमि 
पर हम घूमते रहे 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 44-
 "पत्थरों की दशा"

भीड़ कितनी मिली 
इस जमाने में थी 
याद मुझको कहानी 
बस वो पत्थर की थी 

वो ही पत्थर बना 
सच्चा साथी मेरा 
हम जहाँ तक गए 
याद आती रही 

बेमिशाल याद उनकी 
कहानी रही 
जिंदगी में सदा वो 
रवानी रही 

  पत्थरों की दशा 
 आजतक है वही 
टूटती-फ़ूटती बिखर 
उनकी जवानी गयी 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 46-
    "पत्थरों की बातें"

पत्थरों के संग चलना 
कोई सरल नहीं है 
क्या-क्या पड़ेगा सहना 
इसकी खबर नहीं है 

बेहोश बेकदम होते 
गए थे हम 
लड़खड़ाते कदमों से 
चलते गए थे हम 

  बस थोड़ी मुश्किलें हैं 
इन्हें सहना भी सीखो तुम 
   ये नाम बस रहेगा 
तब शायद न होंगे हम 

अब पत्थरों की बातें 
मेरे दिल को छू रहीं हैं 
कुछ होश आ रहा है 
कुछ बेहोश हो रहीं हैं 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 45-

    "पत्थर कहें"

यार मेरे ही मुझसे 
अब हैं कहने लगे 
पत्थरों की तरह 
तुम हो दिखने लगे 

सोच  लेता हूँ 
जब-कब बैठकर 
पत्थरों पर 
पत्थरों में क्यों 
दिल हैं बसनें लगे 


लोग रूतबा दिखाकर 
  हमें पत्थर कहें 
हम हँस-मुस्कुराकर 
न कुछ भी कहें 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 48-
   "पत्थर देवता बना"

रे जमाना तू कितना 
बदलता गया !
देख पत्थर वही है 
वही ही रहा 

जिंदगी आज तक 
उसने छोड़ी नहीं 
हौंसला को लिए 
आगे बढ़ता गया 

एक दिन उसको 
ऐसा भी मिल गया 
हम तो भक्त ही रहे 
वो देवता बन गया 

ये सच में जमाना 
बदल है रहा !

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 47-
      "पत्थर से मुलाकात"

क्या बताऊँ सफ़र 
सारे पत्थर हो गए 
जिसने पूरे किए 
वो अमर हो गए 


नाम एक बार लूँ 
नाम सौ बार लूँ 
अपने हैं इतने ज्यादा 
कि क्या-क्या कहूँ 

पत्थरों से मेरी एक 
मुलाकात हुई 
देखकर वो मेरे मन 
कि एक बात हुई 

मन का मीत मेरा 
आज पत्थर बना 
तुम जरा साथ दो 
मैं अब तेरा बना 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 51-

  "कहानी नई"

पैर कंकड़ पे था 
मेरा पड़ गया 
मैं फ़िसलता हुआ 
बहुत नीचे गया 

जोर से जा गिरा 
प्रेम पत्थर का था 
हँसने पत्थर लगा 
मैं भी हँसने लगा 

एक ठहाका हुआ
बहुत ही जोर का 
सारे कंकड़ मिल
करके पास आ गए 

सबसे मिलकर गले 
साथ सब चल दिए 
एक मंजिल की तरह 
सफ़र ये बना 

हर एक कंकड़ की 
थी एक कहानी नई 
दुनियाँ सुन-सुन के 
थी बस दीवानी हुई 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 50-
   "पत्थर यहाँ"

कल सफ़र में मुझे 
एक पत्थर मिला 
जा करके उससे 
मैं था टकरा गया 

तेज गुस्से में आकर 
के पत्थर ने कहा 
क्या है दिखता नहीं 
मैं हूँ पत्थर यहाँ 

चोट देता हूँ फ़िर भी 
आए टकराने हो 
मैंने भी हँस करके 
एक प्रतिउत्तर दिया 

    हाँ मुझे है पता प्रेम 
तुममें भी है बसने लगा 
    बस तभी मैंने ये 
टकराने का बहाना है किया 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 49- 
          "एक पत्थर"

एक टीले पर जाकर 
मैं बैठा ही था 
एक पत्थर भी मुझसे 
था कहने लगा 

तुम सफ़र पत्थरों के 
हो संग कर रहे 
क्या जरा सा भी 
है तुमको डर न लगा 

बेहिचक मेरे दिल ने 
भी उत्तर दिया 
मैं तो हूँ पत्थर का 
दिल इसे डरने न दिया 

अब तो पत्थर भी 
मेरा था भाई बना 
मैं निडर हो गया 
साथ वो चल दिया 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 53-
     "पत्थरों में"

आसमान में उस दिन 
पत्थरों से चित्र खिंच गए 
  मन मेरा न रह सका 
दिल में सवाल थे उठ गए 

   ये धरा पर दिख रहे 
आसमान में कैसे रह गए 
 ये खूबसूरत पत्थरों में 
 दिल हैं सबके खो गए 

अनजान सा मैं दिख रहा 
अनजान सा मैं हो गया 
पत्थरों की दूरियों ने 
मन मेरा है मोह लिया 

कुछ अधूरे ख्वाब थे 
शायद वो पूरे हो गए 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 52-
 
"वो ही हैं पूजते"

चल किसी तो ओर बंदे
मंजिल मिल ही जाएगी 
रास्ते चाहें दिखे या फिर 
बिल्कुल नहीं 

चलते जाना जिंदगी है 
रूक जाना बिल्कुल नहीं 
लोग कहते कुछ रहें 
उसपे न देना ध्यान तुम 

लोगों के बातें साबित कर 
देना गलत एक रोज़ तुम 
पत्थरों भी गलत कहते 
रहते जाहिल लोग हैं 

एक दिन वो ही हैं पूजते 
जो कहते जाहिल रोज़ हैं 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 54- 
   "रास्ते प्रखर"
 
पत्थरों के रास्ते ये जा 
 रहे थे साहब! किधर 
बहुत ही सुन्दर सजल हैं 
क्यों जा रहे हैं सब इधर 

इन गुफ़ाओं की फ़िजा में 
कभी तो कुछ होगा इधर 
शायद ये सदियों बाद मैं 
आज लौटा आया हूँ इधर 

 आज आया है समझ में 
थोड़ा सा मस्तिष्क में फ़िर 
पत्थरों के प्रेम की मंजिल 
यही है जिसकी न थी
मुझको खबर,मुझको खबर 

 आओ चलते हम चलें 
जहाँ हैं सारे रास्ते प्रखर 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 56-
      "बिना पत्थर के"

पत्थर प्यार है मेरा 
पत्थर अंगार है मेरा 
घरों की दीवारों में 
देखो लगा श्रंगार 
    है तेरा 

बिना पत्थर के घर कोई 
 कहीं भी छूट न जाए 
तेरे जीवन का ये बंधन 
 कहीं यूँ टूट न जाए 

धरा पर प्रेम की धारा
बहाते हैं यही पत्थर
यही धारा को लेकर ये 
 तुम्हारे पास आए हैं 

 पत्थर प्रेम में टूटे 
बताने ये ही आए हैं 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:03] poet maniss लहर: 55-

      "घेरा मुझे"

कंकड़,पत्थर,धूल ने 
इस भाँति था घेरा मुझे 
लग रहा था ऐसा कि 
अब मिलेगा न सबेरा मुझे 

मुश्किलों में घिरा देखा 
अकेले पवन ने मुझे 
हाथ अपना दे हाथ 
आगोश में ले लिया 
उसने था मुझे 

अब मिला सुकून था 
शायद सब थकान थी 
मिट गई 
एक तरफ़ यूँ था 
लग रहा 
कि भटकी मंजिल 
मुझको मिल गई 

ऐ़ शिवम तू सिरफ़िरा 
इन पत्थरों में क्या 
कर रहा 
तेरी मंजिल है पहाड़ों 
पर 
तू भूमि पर क्या कर रहा 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:04] poet maniss लहर: 57-
     "रेत पर नींदें"

ये लेखनी में दम है जो 
पत्थर को लिख डाला 
भला कैसे लिखा है मैंने 
ये सब तो हमने ही जाना 

कभी पत्थर पुकारेंगे
कभी कंकड़ पुकारेंगे 
मुझे न फ़र्क है पड़ता 
मुझे लोग क्या पुकारेंगे 

मुझे तो रेत पर नींदें 
भी आती जाती हैं 
तुम्हारे हर ख्यालों का 
मुझे पता भी बताती हैं 

कभी इस ओर से 
तुम तो 
कभी उस ओर 
जाते हो 
किसी के प्रेम में 
बँधकर किसी को 
भूल जाते हो 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:04] poet maniss लहर: 59-

  "गढ़ रहा पत्थर"


कैसे उमड़ रहे हैं 
कैसे गरज रहे हैं 
आवाज़ से लग रहे हैं 
मानों ये भी हैं पत्थर 

बादल में बनते चित्रों 
को निहारा हमने 
मुझे भी लग रहा था 
कि अब आ रहे हैं पत्थर 

ये जो पानी बरश रहा है 
मैं खुद से कह रहा हूँ 
सूरत है एक जैसी दे दो 
इसको भी नाम पत्थर 

सब देखते-देखते पत्थर 
  मैं तो चल रहा हूँ 
हर ओर हैं मेरे पत्थर
मैं पत्थर को गढ़ रहा हूँ 


शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:04] poet maniss लहर: 58-
   "सारे जहाँ में पत्थर"


मेरा घर भी है पत्थर
मेरा तन भी है पत्थर 
कहाँ तक क्या बताऊँ मैं 
मेरा तो दिल भी है पत्थर

कभी न मोह करता हूँ 
कभी न ओह! करता हूँ 
भरी महफ़िल हजारों हों 
मैं अपना काम करता हूँ 

अभी निर्णय नहीं कोई 
अभी परिणय नहीं कोई 
सभी का प्यार चाहता हूँ 
अभी नफ़रत नहीं कोई 


मैं तो बस खुशी हूँ कि 
सारे जहाँ में हैं पत्थर 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:04] poet maniss लहर: 61-

"पत्थर के ताज़"

अब पत्थरों की चाह में 
अब चाह पत्थरों की है 
  चल लो अब तुम भी 
थोड़ा ये राह पत्थरों की है 

ये राहें हैं टूटी नहीं 
ये राहें हैं छूटी नहीं 
दुनियाँ की नज़रों में 
सदा मेरी किसी से थी 
बिल्कुल बनती नहीं 

कल तक जो मेरे 
अपवाद थे 
वो आज मेरे 
बाध्य हैं 
बस सुकूँ इसमें 
भी है 
कि पत्थरों के 
ताज़ हैं 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:04] poet maniss लहर: 60-
    "सूरत ही मूरत"

इन पत्थरों की चाहत 
 मेरे ही हिस्से आई 
अब तुम बताओ मुझको 
मेरी याद कैसे आई 

मैं तो आजाद परिंदा 
खूब पत्थरों में घूमा 
तुम भी बताओ मुझको 
क्या-क्या है तुमने पाया 

मैं आजाद था वहाँ भी 
आजाद हो कर आया 
अब सारे जहाँ में सूरत 
पत्थर की बनकर आया 

अब सूरते ये मूरत 
बनती जा रहीं हैं 
जो काम करते अच्छे 
ये उनमें ढल रहीं हैं 

शिवम अन्तापुरिया
[12/15/2020, 09:04] poet maniss लहर: समर्पण 

ये किताब आप सबकी पहले है और उसके बाद में मेरी है क्योंकि मैंने तो पत्थरों को बहुत नज़दीक से देखा व महसूस किया लेकिन आप सबके मन में पत्थरों के प्रति जो विकार आपके मन में जन्म ले चुके हैं उनको मिटाने के लिए मैंने ये काव्य संग्रह "पत्थरों के दर्द" लिखा है वो (पत्थर) क्या सोचते हैं मेरे बारे में बखूबी कवि ने अपनी कल्पनाओं के साथ पत्थरों से बातचीत की है और उसी को काव्य का रूप देकर आप सबकी नज़रों की अदालत में पेश किया है ये काव्य संग्रह जो बहुत ही रोचक होने साथ साथ इसमें हर एक पत्थर की व्यथा को सड़क से लेकर मंदिर, मस्जिद, महलों, झील, नदियों, पहाड़ों,पर्वतों आदि सब को संग्रहित करने के साथ-साथ दुनियाँ के सभीे व अपने माता-पिता को समर्पित करता हूँ ये काव्य संग्रह...

  मुझे आशा है कि आप सब "पत्थरों के दर्द" नामक किताब का बाहें फ़ैलाकर स्वागत करेंगे बहुत ही नाज़ुक व मार्मिक सभी कविताओं का 

            सादर धन्यवाद...
[12/15/2020, 09:04] poet maniss लहर: प्रस्तावना 

सभी पाठक गणों को मेरा सस्नेह नमस्कार व आभार इस किताब को लिखने का मेरा आशय यह कि मेरे मन में बहुत दिनों से पत्थरों को लेकर उथल-पुथल सी हो रही थी, आखिर पत्थर भी ऐसे होते, वैसे होते, हम भी इनसे बातें कर सकते,वो भी अपना दर्द बाँटते,
हम उनको समझते, वो मुझको समझते हम दूसरे के साथ चलते फ़िरते। क्योंकि दुनियाँ ये अब मुझे कुछ भी कहे मुझे हकीकत में पत्थरों से बहुत ज्यादा लगाव रहा है और अब भी है पता नहीं क्यों इसका उत्तर मैं स्वंम भी आपको नहीं दे सकता।
मैंने अब तक पत्थरों पर बहुत सोचा अपने आपको खूब अकेलेपन में संजोया मुझे अपना साथी दिखा तो पत्थर ही जब भी भविष्य में झाँक कर देखा तो परिणाम वही आया कि मुझे पत्थर के बिना कुछ दिखा ही नहीं तब मैंने एक शेर लिखा कि 

कुछ पत्थरों के साथ एक मंजिल शुरू कर दी है l 
मैं तन्हाँ था अब इन्हीं से बातें शुरू कर दी हैं ll 

जब भी मैंने पत्थरों पर विचार किया मुझे वो हमेशा ही अच्छे नज़र आए फ़िर लोग कैसे कहते हैं कि पत्थर खराब होते हैं, किसी व्यक्ति की भी उपमा कर देते हैं कि वो तो पत्थर है जबकि मैंने अब तक जो भी पाया है वो सबकी बातें को गलत साबित करता है,अब मैं पूछता कि आप कैसे कह सकते हैं कि पत्थरों में प्रेम नहीं होता ऐसा सोचने वाले जरा सा कोई मंदिर में झाँक कर देंखें तब आपको पत्थरों का प्रेम नज़र आएगा,ये प्रेम नहीं तो क्या है कि वो एक मंदिर में स्थिर होकर सबको देखते हैं हम सब उनके सामने सिर झुकाते हैं ये प्रेम नहीं तो क्या है, क्या आपने आज तक किसी निर्दयी व्यक्ति के सामने अपना सिर झुकाया है, अगर पत्थरों में प्रेम नहीं है तो भगवान ने पत्थर को ही अपने रूप में क्यों चुना जब "भगवान की भूख प्रेम से ही मिटती है" फ़िर वो ये निर्दयी  पत्थर को कैसे चुन सकते थे।

मिटाओ मन से ये शंका 
कर लो प्रेम पत्थर से 
यही है रास्ता ईश्वर का 
जो मिलाता है परमेश्वर से 

  सादर प्रणाम 
आपका 
लेखक शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 1-

    "कभी मैं रूठा नहीं"

   मानवों से बढ़कर मैं हूँ ही नहीं...
लोग फ़िर भी मुझे मानते ही नहीं 
दर्द देता हूँ सबको बहुत ही बड़ा 
दुनियाँ फ़िर भी मुझे मानती देवता 
फ़र्क मुझसे,मैं किसी से रूठा नहीं 

मानव कोई ऐसा नहीं,जो खुद से रूठा नहीं 
सूखा,बड़ा मैं दिखता बुरा 
फ़ूट-फ़ट पिटकर मैं बना देवता 
देवता ही बनने में है असलियत 
नहीं तो गंदी जगह में पड़ा का पड़ा 
जो दोस्त मेरे डरते चोटों से रहे,
वो चूमते धूल पैरों की रहे 
कैसे कहती दुनियाँ प्रेम मुझमें नहीं 
प्यार के कारण ही तो मैं बना हूँ देवता 
दौड़ की महफ़िल में न जख्मों से डरा 
डरने वाले कभी अपनी मन्ज़िल पाते नहीं 
अरे दर्दों पे मेरे मित्र मुझपर हँसे 
इसी वजह से वो नीचे हम ऊपर खड़े 
खुद पर गर्व करके मैं हँसता नहीं 
ये जमाना सबक मुझसे लेता नहीं 
मानवों से बढ़कर मैं हूँ ही नहीं... 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 2-

        "खुशी में टूटा मैं"

बन गया हूँ पहाड़ उसका,
त्याग करूँ या वरण करूँ 
टूट गया हूँ खुशियों में, 
खुद को याद करूँ या दफ़न करूँ 
कुछ बनने को टूटा पत्थर, 
इसे हास्य कहूँ या भाग्य कहूँ 
डर गया कलेजा है उसका 
रोने में हँसने को नमन करूँ 
पत्थर दिल है बना मेरा कैसे 
प्रेम में उसको मोम कहूँ 
सोते हुए जगता कैसे, जख्मों में मरहम देता कैसे 
हमको पता नहीं कुछ भी, इनको कैसे स्वीकार करूँ 
अपना ही अब तक हुआ नहीं,
तेरा कैसे विश्वास करूँ 
रात गुज़ारी खुशियों के सपनों में,
यकीन नहीं विश्वास भी था 
प्रातः सबकुछ छीन लिया, 
ये कैसे यकीन करूँ 
लौट न देखा उसने मुझको, 
मैं क्यों रोकरके विलाप करूँ 
क्या पाँव नहीं,क्या हाथ नहीं 
सबकुछ तो तन में हैं 
जिसने दिया सारी दुनियाँ को,
उस ईश्वर पर विश्वास करूँ 
शिवम खुशी में टूटा मैं पत्थर बनकर,
इच्छा थी कटकर मैं भगवान बनूँ 
बन गया हूँ पहाड़ उसका,
त्याग करूँ या वरण करूँ 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 3-

"पत्थर को उठाना भूल नहीं"

हाथों में गढा़ कुछ और नहीं,
माथे पे लिखा कुछ और नहीं 
दरिया में बहता है मानव,
किनारा मिलता पर ठौर नहीं 
पत्थर टकराता पानी से,
क्या मिलता उसको कोई और नहीं 
अपनी दृढ जीवन यात्रा में,
बाधा बन पाता कोई तूफ़ान नहीं 
तकदीर लिए माथे वाली, 
बिन हाथों के भी लड़ते हैं 
इंशान वही एक पत्थर है, 
जो पत्थर से ही लड़ते हैं 
हीरे वाली कीमत है 
पत्थर को उठाना भूल नहीं 
दुनियाँ में बहती हर धारा में बह जाना 
ये जीवन का है मूल नहीं 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 4-

   "पत्थर ही कह डाला"

जो लोग बुरा मुझे कहते हैं 
बुरा उन्हें मैं समझता हूँ 
भगवान रूप में भी मुझको, 
जो पत्थर रूप समझते हैं 
डरकर-डरकर जीना ठीक नहीं,
रोकर भी हँसकर जीते हैं 
वो गम डूबा पत्थर है, 
जिसका बेकार हुआ मुकद्दर है 
कुछ दर्द मिले,कुछ ठेस लगी, 
सबको सहकर जीना ही पत्थर है
कुछ वक्त नहीं घरवार नहीं,
जब रूठा तेरा ही सबघर है 
पत्थर का जीना मरना क्या, 
सदियों से बना वो तारा है 
एक मोड़ नहीं, उस ओर नहीं,
हर राह में तेरा परिवारा है 
हर एक भविष्य की राह में हूँ, 
फ़िर भी पत्थर रूप समझते हैं 
शिवम जख्मों को भरूँ कैसे,
जब पत्थर ही कह डाला है 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 5-

      "कहते हैं पत्थर"

चमकता है पत्थर
निखरता है पत्थर 
कण-कण क्षण-क्षण 
में रहता है पत्थर 

आवाज कल-कल 
छल-छल के साथ 
हर रोज बहता भी 
है पत्थर 
हर रूप में, सब रंग में 
मुझे मोह लेता है पत्थर 

 प्रेम के बंधन में जड़कर 
क्यों मुझे तड़पाता है पत्थर 
पानी में बहकर भी रूक जाने 
से अपनी मंजिल से नहीं
 भटकता है पत्थर 

कुछ सीख तो ले मानव पत्थर से 
जो कड़े प्रहारों को हँसकर सहना 
भी आदत है पत्थर 
कभी नहीं बहे आँशू उसके 
खुद को तुड़वाने में,
जीवन को बनाने में,
ऐसे ही मंजिल पाने वाले मानव को कहते हैं पत्थर 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 6-

            "मन्नत मेरी"

हर शख्स को है जख्म 
की आदत नहीं...
हम जख्म देते हैं भले ही 
और जख्म लेने की भी 
मन्नत मेरी 

गर जख्म मिलते न मुझे 
यह मंजिल पाता मैं नहीं 
सुख-दुःखों की धारा में 
तुम्हें हाथ जोड़े देख पाता
 मैं नहीं 

मुझे हाथ जोड़ने,सिर झुकाने वालों से भी है एतराज नहीं,
जो मुझे छूकर हैं देखते 
उनका अहसान भी भूला नहीं 

हाँ शुक्रगुज़ार हूँ दुनियाँ का 
  एक मंदिर में बैठकर 
दुनियाँ को निहार लेता हूँ यहीं जब तक मिट्टी में रहा पैरों से 
भी थी इज्जत मिली नहीं 

हर शख्स को है जख्म की आदत नहीं... 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 7- 
      "चलते हुए आए"

 पत्थर की शिलाओं पर
 हम चलते हुए आए 

जमाने में रेत के पुल 
 मुझे अब तक नहीं भाए 
कुछ कंकड़ों की धूल 
  से मिलते हुए आए 
उससे दूर होकर के 
दिलों में घूम कर आए 
पत्थर दिल जो दिखते थे 
प्यार उनमें भी था बसता 
उन्हीं के प्रेम में डुबकी 
लगाकर आज हम आए 

पत्थर की शिलाओं पर 
हम चलते हुए आए 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 8-

       "रखो अदब"

जो बदल गया अरमान मेरा 
अपना ही मुकद्दर पाने को 
क्यों खौंफ हुआ उसके दिल में 
पत्थर को पत्थर से लड़ाने में,

फ़ासला गुफ़्तगू रखना 
हाथों ही हाथों में 
टूटे हुए पत्तों को 
न रखो डालों ही डालों में,

छलके पत्थरों के आँशू 
जीवन बीता जा रहा 
उनको सुखाने में, 

रखो अदब इस दुनियाँ का 
जैसे रखा आँचल को 
अपने बचाने में, 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 9-

     "पत्थर का रुतबा"

तेरे दश्तूर का रुतवा 
मेरा दश्तूर बाकी है 
तमन्ना दिल में बाकी है 
मोहब्बत दिल में झाँकी है 

हाँ बरखा बीतने वाली 
बारिश अब भी बाकी है 
पिघलता दिल ये जाता है 
बनना पत्थर बाकी है 

अधूरी रातों के सपने 
देखना अब भी बाकी है 
मगर शिवम जखम तेरे 
दिखाना दुनियाँ को बाकी है 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 10-

      "पत्थर पर"

पत्थरों के लिए 
जीना चाहा मैंने 
सुबह और शाम 
से है न पड़ता 
फ़र्क पत्थर पर 

सिला जो मिलता 
अनजाने अपनों से 
वो बयाँ करना 
चाहा मैंने

उल्फ़त से भरी
 हर बात को 
अब तक संजोय
क्यों रखा मैंने 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 11-

         "सजा लेने देता"

पत्थरों के घाव भी 
रूला देते मुझे 
जिंदगी का हर
वाकया कुछ नया 
सिखाते मुझे,

तेरी चाह में 
पत्थर बनकर 
लुढ़कने की ख्वाहिश 
है मुझे 
तेरी खातिर निकले 
आँशू भी मीठे 
लगते मुझे, 

बस दो वक्त के लिए 
तू साथ देता मुझे 
हाँ अरमानों को 
अंजामों तक की 
दुनियाँ तो सजा 
लेने देता मुझे,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 12-

    "घर में भी पत्थर"

 गलत पत्थर नहीं
  गलत हम हैं 
हर इंशान पर 
बेवजह क्यों
हँसते हम हैं,

जिंदगी मौत से खेले 
या मौत से खेले,
आखिर खेलना 
खेल ही है, 
रहनुमा इश्क पत्थर का 
टूटना प्यार भी है,

बिछड़ना गम जो होता है 
तो मिलना प्यार होता है 
कहीं पत्थर की चट्टां को 
बिछड़ना खुद से पड़ता है,

हाँ रहकर के मंदिर में 
आखिर प्यार पाता तो 
पत्थर ही है,

सोचो तो सड़कों पे
 भी पत्थर है 
तेरे घर में भी पत्थर है,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 13-

नवगीत
           "  पत्थर दिलों की यादें "

मुझे वक्त याद आया
      पत्थर बना रहा हूँ
उन जख्मों वाले घावों
  पर मरहम लगा रहा हूँ
मेरा तर बतर ये होना
मेरे जीवन की है ये गवाही
छाँव के नीचे धूप से
    मैं पिघला जा रहा हूँ
उम्मीद की वो राहें
      छूटी नहीं हमसे
तेरी यादों में अब तक आशूँ
          बहा रहा हूँ
तेरे कहे वो लफ्जों को
  अपने होंठों से भुला रहा हूँ
मुझे जोङ करके
तोङा उनको...
    वही भुला रहा हूँ
इतना भी याद रखना
जो प्यार था मेरा झूठा
तो अब तक खुद को
   क्यों रूला रहा हूँ
प्यार के शहर में रहकर
अब नफरत जगा रहा हूँ
बिछङे पत्थर दिलों की
   यादों में
अन्तापुरिया
नवगीत लिखा रहा हूँ

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 14-

        "मौसम से नाता"

मिट्टी भी पत्थर 
बन जाती है 
जब कोई इश्क में 
मन को डुबोता है,

वो वासना होता है 
जो इश्क में तन 
को डुबोता है,

रहम मंजर का 
उठा लो तुम 
औचित्य दिल से 
है क्या 
भरोसा दिल से गर 
तुमको 
खोखले ख्वाब
से डरन क्या,

जाहिल पत्थर नहीं 
वो प्यार की परिभाषा है 
सिमटना-फ़ैलना पत्थर 
की क्या गलती 
वो तो मौसम से नाता है,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 15-
       "चाव जिन्दा है"

पत्थरों में अनाज 
के नहीं 
प्यार के फ़ूल खिलते हैं 
वहाँ बहते पानी को
भी सुकूँन मिलते हैं,

मानव को पत्थर दिल
 कहने वालों को 
पुख्ता सुबूत मिलते हैं,

जब जिंदगी खुद से 
नाराज होती है 
तब पत्थरों को 
दिल में बसाने को 
उसूल ढलते हैं,

पत्थरों पर ठहरकर 
देखने को भी 
दिल कुबूल करते हैं,

शिवम अब मेरे दिल में 
पत्थरों पर सोने को 
एक चाव जिन्दा है,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 16-

         "कितने मनोहर"

पत्थर की चादरों से 
रेत की गागर भरी 
धुंध से चेहरा खिला 
पत्थर पर चोट जब 
भारी पड़ी,

बहकने लगा मन मेरा 
पत्थर से जब चिंगारी उठी 
देख लीला ओ प्रकृति की 
अब संध्या होने लगी,

कल-कल ध्वनि 
कितनी मनोहर है 
गड़गड़ाते पत्थरों को 
प्रेम में पिरोने लगी,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 17-

     "वो दृश्य"

वो मनोहर दृश्य पत्थर का 
मुझे मोहने लगा 
मैं अस्थिर से स्थिर सा 
दिखने लगा,

चंद पल ठहरा वहाँ 
यादें अनंत बस गईं 
कलरव का प्रभात था 
कुछ याद ही नहीं रहा,

संध्या ने कब ढक लिया 
आजतक वो दृश्य मेरे 
दिल में कैद हैं 
बैठकर पत्थर को कोमलता 
सा महसूस करने लगा,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 19-
       "पत्थर अकेला"

लिखे पत्थरों पर 
जब नाम मेरा 
दुनियाँ को लगता 
हुआ अब सवेरा,

चुभन पत्थरों की 
मेरी प्यास अब है 
जरा रुककर देखो 
मैं खड़ा हूँ अकेला,

  जिगर का टुकड़ा 
और पत्थर का टुकड़ा
सदा साथ रहकर 
भी रहता अकेला,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 18-

      "पत्थर से प्रेम"

पत्थर की बड़ी चट्टान 
पर एक लीक बन जाऊँ 
जिन्दा नाम रह जाए 
ऐसा काम कर जाऊँ,

पत्थर प्रेम की भाषा 
पत्थर ग्यान की आशा 
चाहें जान ही जाए 
मगर कुछ नाम कर जाऊँ,

     पत्थर से भरा दिल 
आजतक पिघला नहीं उसका 
पत्थर प्रेम के बरसे 
मैं ऐसा घाव बन जाऊँ,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 20-

       "पत्थर में विश्वास"

गाँव मिट्टी में बसते हैं 
शहर पत्थर के बन गए हैं 
सवालों ही सवालों में 
वो दिल पत्थर के बन गए हैं,

ये पत्थर के कणों में हम 
जरा सा घूम आते हैं 
मेरे घरौंदों में है मिट्टी 
हम सड़क में पत्थर को पाते हैं,

पत्थर से सजे जो द्वार दिखे 
अपनों-अपनों की आश लिए 
जीवन के अब पग-पग पर 
सब कुछ न कुछ विश्वास लिए,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 21-
         "पत्थर पर ही"

कुछ पल गुज़रे
कुछ दिन गुज़रे 
बिन पत्थर के 
न हम निकले,

ये जीवन तो
संघर्ष ही है 
बिन प्रेम के पत्थर 
न निखरे, 

कुछ अलग हुआ 
कुछ थलग हुआ 
कण-कण में 
ये अलग हुआ,

उस जीवन की 
हर गाथा में 
पत्थर पर ही 
नाम है अमिट हुआ,


शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 22-
         "पत्थर होते हैं"

जीवन के आनंद भरे 
तब गरिमामय होते हैं 

 मन तृप्त हो जाता है 
जब कंकड़ में जल पाते हैं
हाथ लगे या पैर लगे 
आखिर पत्थर ही होते हैं 
प्रेम भरे पत्थर सारे 
जब सबके मन मोह लेते हैं,

चित्त प्रसन्न हो जाता है 
जब सैर सपाटा करते हैं 
आखिर सोच वहाँ ले जाओ 
पत्थर ही वो होते हैं,

जीवन के आनंद भरे 
तब गरिमामय होते हैं 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 23-

      "पत्थर मेरे साथी"

ये पत्थर की आवाज़ सुनो!
   ये पत्थर मेरे साथी हैं 

जीवन की हर यात्रा में 
ये सदा रहे मेरे साथी हैं 
जीवन की हर पगडण्डी में 
इनका साथ मिला हमको 
सदा साथ हम रह लेंगे 
अब इनका साथ निभाना है 

ये पत्थर की आवाज़ सुनो!
   ये पत्थर मेरे साथी हैं 

जीवन की आपाधापी में 
सदा गले से मिलते थे 
रोज़ सुबह उठकरके हम 
इनके ही पथ पर चलते थे 
सदा प्रेम बरसाएँगे अब 
ये संकल्प हमारा है 

ये पत्थर की आवाज़ सुनो!
   ये पत्थर मेरे साथी हैं 

अब पत्थर की चिंगार बनूँ 
या पत्थर की आवाज बनूँ 
भूत,भविष्य और वर्तमान की 
सबकी ही मैं राह बनूँ 
प्रेम,समर्पण,निस्वार्थ भाव को 
अब सबके हमको देखना है

ये पत्थर की आवाज़ सुनो!
   ये पत्थर मेरे साथी हैं

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 24-

         राहों का पत्थर"

राहों का पत्थर 
बना मैं पड़ा हूँ 
न कोई रूप मेरा 
अनगिनत कंकड़
मैं बना हूँ, 

राहें हमेशा कठिन 
  ही हैं होती 
कठनाईयों का 
गवाह मैं बना हूँ,

निखरता मैं जब हूँ 
तो मंदिर में मिलता 
नहीं तो पैरों से 
सड़कों पर लुढ़कता,

कहीं तन है मेरा 
कहीं मन है मेरा 
सदियों से बिछड़ता 
रहा मेरा मेला,

न ही कनसुना हूँ 
न ही अनसुना हूँ 
सबकी हकीकत से 
मैं वाकिफ़ हुआ हूँ,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 25-

        "असाह जिंदगी"

हल्की सी ये जिंदगी 
जिसका भी बोझ अब 
मुझसे उठता नहीं, 

आह! निकलती है तन से 
असाह! कराह सी आवाज़ 
जिसे कोई सुनता नहीं,

धुँआ -धुँआ सी है ये जिंदगी 
मगर बोझ इसका कोई
 पत्थरों से कम नहीं,

हूँ मजबूर जीने को 
मगर ये जिंदगी 
एक जिंदा लाश
 से है कम नहीं,

चलता जरूर जा रहा हूँ 
मुशाफ़िर की तरह मगर,
बिना मन्जिल पाए भी 
जीना ये कोई जिंदगी 
में जिंदगी नहीं,

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 26-

       "पत्थर बनें"

पत्थर बनें वो दिल तेरे 
अब थे ख्यालों में मेरे 
लेकिन डरा मैं अब नहीं 
खोए ख्यालों में तेरे,

चलते सफ़र की राह में
आधार चट्टानों से थे 
अपनी-अपनी राह पर 
सबके कदम मंजिल पर थे 

हम अपने कदम की 
चाह में चलते सदा रहे 
वो पत्थरों की चाह में 
मुझे पत्थर समझते रहे 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 27- 

"पत्थर बिना"

दर्द पत्थरों के 
 सुनते सदा रहे हम 
पत्थर बिना हुए हम 
अधूरे जगह जगह पर 

चले आओ साथ मेरे 
हम भी तो चल रहे हैं 
 ये जिंदगी हमारी 
पत्थर बिना न पूरी 

तुम भी मेरे बनो अब 
आकर जरा पड़ोसी 
हमको समझ भी लेना 
है कैसी मेरी कहानी 

शिवम अन्तापुरिया
[1/2, 17:28] poet maniss लहर: 28- 
  
"कहें पत्थर पत्थर"

  लीक पत्थर की 
तुम बन गए गर यहाँ 
लोग सदियों तुम्हें 
 याद करेंगे यहाँ 

लोग मिट्टी के कण 
 में मिले हैं बहुत 
नाम तक औ निशां
भी रहा न यहाँ 

ये जमाना कहे 
मुझे पत्थर पत्थर 
दुनियाँ समझे नहीं 
मेरा रुतवा यहाँ 

शिवम अन्तापुरिया

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