Monday, November 23, 2020

"आपदाओं का सैलाब"

"आपदाओं का सैलाब"

किसानों की कथित पीढा सुनाने 
आज आया हूँ 
बने जो जख्म से नासूर दिखाने उनको आया हूँ 

बड़ा बेदर्द है शासन, सुनना कुछ भी नहीं चाहता 
केवल अपनी ही बातें सुनाना उसको है आता
 
कहीं भाषण,कहीं नारे, कहीं पर रैलियाँ देखीं 
सूखी कृषकों के घर की नहीं हैं रोटियाँ देखीं 

किसानों की यही पीढा मेरे आँसू बहाती हैं 
बहुत देखा है आँखों ने, नहीं अब देख पातीं हैं 

कभी ओले, कभी बारिश, कभी तूफ़ान आता है 
बेमौसमी आपदाओं का यही सैलाब आता है 

किसानों का मुखर चेहरा बड़ा मायूस रहता है 
नेताओं का दिया, भाषण जब भाषण ही रहता है 

   युवा कवि 
शिवम अन्तापुरिया 
   उत्तर प्रदेश

Thursday, November 19, 2020

सरकार बताए क्या नाम दूँ

"सरकार बताए क्या नाम दूँ"

आज फ़िर एक लम्बे अंतराल के बाद तेज़ गुस्से वाली पीढ़ा के साथ ये लेख लिख रहा हूँ ...

मैं आज एक ही लेख में कई बातों व मुद्दों को आप सबके सामने रखूँगा, सबसे पहले तो कोरोना पर लिखूँगा जो इस प्रकार है 

     "कोरोना फ़ैलता ही नहीं"
अगर ये दो गलतियाँ न हुई होती 

 मैंने सबसे पहले कोरोना की खबर मध्यप्रदेश के अखबारों में पढ़ी थी नवम्बर 2019 में वहाँ सरकार ने चेताया भी था अगर वहाँ पर राजनीतिक पेंच वाज़ी न चल रही होती तो ये कोरोना इतने पाँव भारत में फ़ैला ही नहीं सकता था, लेकिन ये राजनेताओं को अपनी कुर्सी की पड़ी थी तब बिल्कुल ध्यान ही नहीं केन्द्रित किया केन्द्र सरकार ने...

खैर वो छोड़ो फ़िर भी जब कोरोना कुछ ही हद तक था लेकिन ट्रंप के साथ बातचीत करने के लिए लाखों की भीड़ को देश-विदेश भर से एकत्रित किया गया जिससे संक्रमण ने और तेज़ी पकड़ ली इसके बाद सब ठीकरा जनता पर रखपर उसी के रोजगार पर छुरियाँ चला दी गयीं 
अब मैं देश के प्रधानमंत्री से सवाल करता हूँ कि क्या आप अमेरिकी राष्ट्रपति से अकेले मीटिंग नहीं कर सकते थे लेकिन कोरोना फ़ैलाने की वजह जमात वालों पर रखा गया अब ये बताओ की जमात के लिए अनुमति तो सरकार ने ही दी होगी 
( कोई ये न सोचे की मैं पक्ष पात कर रहा हूँ सच को सच लिख रहा हूँ बस यहाँ कोई जाति धर्म की बात नहीं कह रहा हूँ )

"एक और सवाल आर्थिक स्थिति कैसे बिगड़ गई बिगड़ ही नहीं सकती"

मेरा इरादा किसी को अपमानित करने का नहीं है सिर्फ़ सच्चाई जानने का है जो भी हिम्मत रखता हो मुझे बताए... 
मैं कोई भी राजनीतिक दल से ताल्लुक़ नहीं रखता हूँ पिछली सरकारों ने भी बहुत बड़ी-बड़ी बीमारियों का सामना किया है टीबी, हैज़ा, पोलियो, एड्स और भी लेकिन सरकार ने लाकडाउन कभी नहीं किया जबकि एड्स, टीबी तो बिल्कुल लाकडाउन के हक़दार थे ही फ़िर बहुत ही आसानी काबू पा लिया गया और इसमें भारत बंद बावत भी कमी बीमारी में कमी हुई ही नहीं जिन्हें मरना था उन्हें मौत ने आगोश में ले ही लिया वायरस अभी भी खतम नहीं हुआ है क्या फ़ायदा हुआ बन्दी का बदले में नुकसान ही हुआ, 
पिछले समय में सन 1962, 65, 71  में युद्ध भी लड़े गएलेकिन आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं हुई न किसी का रोजगार छीना गया जो वेतन लागू होने वो लागू किए गए, मैं मानता हूँ उन सरकारों ने देश को लूटा है वर्तमान सरकार कहती है की वो देश को लूटते रहे हैं, खूब घोटाला भी हुए फ़िर भी देश आगे बढ़ता रहा है पीछे नहीं गया और अब आप तो कहते थे " देश नहीं झुकने दूँगा, देश नहीं बिकने दूँगा "
और आपने देश को झुका भी दिया आर्थिक स्थिति में और बेंच भी दिया बहुत कुछ अब आप पर भरोसा कैसे और क्या देख कर करूँ मैंने आपके पोर्टल पर एक पत्र भेजा उसका आजतक जवाब नहीं क्या जनता की सुनते हो... 

"जनता ने आपको रूपये दिए देश के लिए वो कहाँ गए"

पीएम केयर फ़न्ड में अनगिनत रुपये का चंदा पहुँचा अगर आप देश के लिए कार्यरत हैं तो ₹ कहाँ  किसके पेट में चले गए 
कोर्ट ने आदेश दिया उस फ़न्ड पर आरटीआई नहीं जाँच करेगा मान लिया लेकिन ये बताओ 
इसका मतलब ये हुआ की ऐसे संकट के समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री के नाम पर जनता को ठगा गया है फ़िर तो जब दान करने को कहा गया तब यही कहा गया था कि इस महामारी से लड़ने के लिए सब सहयोग करें 
फ़िर जब ये महामारी के लिए लिए गए थे ₹ तो अब पार्टी के कैसे हो गए अगर पार्टी के ही हुए तो ये पार्टी के लिए चंदा सारी जनता से महामारी के नाम पर क्यों लिए गए, इस सवाल का जवाब मैं कोर्ट से भी माँगता हूँ 
क्योंकि मैं जानता हूँ जब सरकार बहुमत में होती है तो न्यायालय घुटनों पर आ जाता है वो वही करता है जो सरकार कहती है मेरे पास पिछले दशकों के बहुत ही प्रमाण हैं इस प्रकार के, "इंदिरा गांधी ने कैसे क्या किया था" 
मेरा ख्याल यही है वो फ़न्ड के जरिए जनता को ठगा गया है 
आर्थिक स्थिति कुछ नहीं बिगड़ी है अपने पेट भरे गए हैं नहीं तो आप दान भर का ₹ अगर निकाल दें तो आर्थिक स्थिति लाइन पर आ जाए 

"क्यों कर रहे हो किसानों के साथ अन्याय"

पराली पराली पराली पिछले साल कोर्ट ने आदेश दिया था किसानों को परेशान न किया जाए उन पर जुर्माना न लगाया जाए फ़िर इस साल फ़िर वही मुद्दा उठा लिया गया है आख़िर क्यों... 

सदियों से किसान पराली जलाते आए हैं अब रोक क्यों 
अभी सभी किसान भाई तिलहन की खेती में कीड़ों से परेशान थे किसी ने नहीं सुना सारी फ़सल काट दी दुबारा बुआई करनी पड़ी उसमें भी नुकसान हो रहा है मैं स्वंम लखनऊ सेंटर कीड़ा भेजा कोई जवाब नहीं मिला 
पराली जलाने किसान को लाभ होता है न कि नुकसान कीट,पतंगे  हानिकारक तथ्य खतम हो जाते हैं अब वो भी करने से रोका जा रहा है,दवाओं का स्प्रे करने से भी रोका जा रहा है किसान करे क्या 
जबकि ये प्रदूषण की सच्चाई ये है ....

ये प्रदूषण तो अमीरों की दीवाली से छाया है l 
इल्ज़ाल किसानों की पराली पर आया है ll 

सरकार किसानों के खिलाफ जो लागू करे वो हाल लागू हो जाता है 
अभी केन्द्र ने 50₹ बढाकर गेंहूँ का मूल्य 1925₹ से 1975₹ किया किसान के गेहूँ  1400-1500₹ में लिया जा रहा है अब ये क्या है 
खाद का रेट बढते ही लागू हो जाते हैं 
पेट्रोल का रेट बढते ही लागू हो जाते हैं 
किराया बढते ही लागू हो जाते हैं 
किसान के अनाज़ का रेट घटते ही लागू हो जाते हैं 
लेकिन किसानों का तो जो रेट तय है फ़सल का वही नहीं मिल पा रहा है ये सब क्या है 
इसे क्या नाम दूँ l 

    लेखक/विचारक 
~शिवम अन्तापुरिया 
       उत्तर प्रदेश 

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Wednesday, November 18, 2020

प्यार के पन्ने

" प्यार के पन्ने "

 जवानी है मोहब्बत है 
बुढ़ापा रोज़ आएगा 

सियासत में मोहब्बत है 
चुनाव फ़िर से आएगा 

शकल पे जो भी मरते हैं 
वो धोखा खा ही जाएगा 

 शिवम ये प्यार के पन्ने 
शलीके से ही पलटो तुम 

 हाथ लाखों मिलाएँगें 
समय एक ये भी आएगा 

        रचयिता 
~ शिवम अन्तापुरिया

Monday, November 9, 2020

"आँसू पीते देखा है"

सब कुछ अपना खोकर 
उसने धैर्य नहीं खोया होगा 
सारी रात जागकर भी 
वो दिन में नहीं सोया होगा 

मुझसे ज्यादा कृषकों के 
हालात कौन अब जानेगा 
जो फ़सलों को पानी देता 
क्या वो ही पानी को तरसेगा 


शिवम अन्तापुरिया



 कृषकों की पीढ़ा क्या है मैं 
सम्मुख तेरे लेकर आऊँगा
औकात तेरी क्या शासन है 
मैं तुझे बताने आऊँगा

"आँसू पीते देखा"

दुर्बल और निर्बल काया 
को मिटते हमने देखा है 
अभी टूटती साँसों का 
दम घुटते हमने देखा है 

अन्न उगाते सत्ता खाती खुद 
 को धूल फ़ाकते देखा है 
लाचार किसानों की काया 
को फ़न्दे पर लटका देखा है 

हाँ अब कृषकों की पीढ़ा 
का कैसे मैं आव्हृान करूँ 
सत्ता में निर्दयी सब बैठे हैं 
अब कैसे मैं ये सहन करूँ 

नहीं भाव मिलता है उसको 
मन्डी में लुटता हमने देखा है 
तुम कहते हो दोगुना करेंगे 
हमने तो सिंगल उसको देखा है 

तुम तो सत्ता में मस्त हुए 
किसान बेचारे पस्त हुए 
वो कहते खुशियाँ हमने बाँटी हैं 
हमने तो आँसू पीते देखा है 

   ~ शिवम अन्तापुरिया 
          उत्तर प्रदेश

Friday, November 6, 2020

"आत्महत्या कोई हल नहीं"

"आत्महत्या कोई हल नहीं"


"चिंता से बचें सुखी जीवन जिएँ"
खुद स्वस्थ रहें,दूसरों को भी प्रेरित करें" ....

आज मैं बहुत दिनों बाद ये लेख लिख रहा हूँ पिछला लेख मैंने इसी वर्ष मई में लिखा था कोरोना पर "जेलों में भी हो कोरोना का बचाव"
जिसका प्रभाव भी दिखा और आज पूरे पाँच महीने बाद लिख रहा हूँ कोई लेख शायद आपके सबके लिए ये महत्वपूर्ण साबित हो आप भी अपने परिवार को संतुलित रखें और अवसाद से सदा ही बाहर रखें,
 "क्योंकि मात्र जीवन ही सब कुछ नहीं है, जीवन से भी बढ़कर आपका स्वस्थ होना है"
 क्योंकि ? आज आप आए दिन देख रहे होंगे कि ...
एक तरफ पूरी दुनियाँ में लोग तरह-तरह की बीमारियों से लाखों लोगों की जानें जाती हैं तो एक तरफ लाखों लोग ऐसे भी हैं जो अपनी ही अपनी जान के दुश्मन बन बन बैठते हैं जिसका मूल आधार ही है चिंता से हारकर बहुत लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं जबकि आत्महत्या शब्द ही एक काँटे की भाँति चुभता है फ़िर भी लोग इसे सीने से लगा लेते हैं, कुछ का मानना है कि आत्महत्या को मनचाही मौत भी  कह सकते हैं जबकि आत्महत्या एक अनचाही व दर्दनाक मौत है जो सच भी है आत्महत्या के लिए लोग कई तरीके अपनाते हैं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रति वर्ष करीब 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं...

वहीं औसतन 40 मिनट पर आत्महत्या की एक घटना घटती है. जबकि प्रति 3 मिनट पर इसकी कोशिश की जाती है. हर आत्महत्या की अपनी परिस्थितियाँ और कारण होते हैं. आत्महत्या करने वालों में महिला, पुरुष के अलावा बच्चे भी शामिल हैं, जो डिप्रेशन व तनाव के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं.

आत्महत्या के कई कारण भी होते हैं और कई ऐसे भी कारण होते हैं जिन्हें कोई समझ भी नहीं पाता है जबकि... 

आत्महत्या के मुख्य कारक मानसिक विकार, संस्कृति, पारिवारिक व सामाजिक परिस्थितियाँ व अनुवांशिकी हैं पारिवारिक कलह, वित्तीय कठिनाइयाँ परीक्षा में असफलता, बेरोजगारी, गरीबी, बेघर होना आदि की वजह से तनाव में रहना...
हमेशा अवसादग्रस्तन रहना भी है आत्महत्या की वजह.

कोई गंभीर बीमारी, बहुत बड़ी क्षति होना या किसी अपने को खो देने का गम.
 कुछ मेडिकल कंडिशन जैसे किसी बीमारी में ठीक होने की संभावना खत्म हो जाना तक भी व्यक्ति यही कदम उठाने को तत्पर्य हो जाता है लेकिन मैं इनसे सवाल करता हूँ कि आखिर क्या हासिल कर पाओगे ऐसे 

आत्महत्या के  लक्षण कुछ इस प्रकार बताए गए हैं जो आपके सामने पेश कर रहा हूँ ...

 अक्सर आत्महत्या से पहले व्यक्ति इसी विषय पर बात करता है और बोलचाल में जाने-अनजाने कहता है कि मैं आत्महत्या कर लूँगा. या फिर इससे तो अच्छा होता मैं मर जाता,
व्यक्ति खुद को बहुत ही असहाय महसूस करता है.
जीवन के प्रति निराशावादी विचारधारा आने लगे 

व्यक्ति का अक्सर आत्महत्या के तरीकों के बारे में पूछताछ करना.
तेज गति से कम समय में अधिकाधिक लोगों से मिलने का प्रयास करना.
 मुलाकात के दौरान लोगों को अलविदा कहकर अंतिम मिलन का संकेत देना
खाने-पीने व सोने की आदतों में बदलाव आना.
डायरी लिखने में अधिक समय गुजारना.
अपनी सबसे फेवरेट चीजों से दूर हो जाना.
अपनी सबसे फेवरेट चीजों से दूर हो जाना.
व्यवहार में चिड़चिड़ापन आना.
जब किसी व्यक्ति के अंदर अचानक बिना किसी कारण रोने की भावना उत्पन्न होने लगे.

सामाजिक रिश्ते और जिम्मेदारियों से दूर भागना 
 लोगों से सुसाइड के बारे में बात करना 
व्यक्ति में आपराधिक सोच का आना 
ये सब तथ्य बड़ी मुश्किल से आप लोगों के बीच ला पाया हूँ इसके बहुत से तथ्य ऐसे हैं जिन्हें मुझे खोजना पड़ा सिर्फ़ो सिर्फ़ आप सबके लिए 
अब कुछ ऐसे आँकड़े आप सब के सामने ला रहा हूँ जिन्हें पढ़कर आप थोड़ा परेशान हो सकते हैं...

 भारय में हर 4 मिनट में कोई एक अपनी जान दे देता है और ऐसा करने वाले तीन लोगों में से एक युवा होता है यानी देश में हर 12 मिनट में 30 वर्ष से कम आयु का एक युवा अपनी जान ले लेता है। ऐसा कहना है राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का। हाल ही में आए दुर्घटनाओं और आत्महत्या के कारण मौतों पर वर्ष 2009 के रिकार्ड के मुताबिक 2009 में कुल 1,27,151 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 68.7 प्रतिशत 15 से 44 वर्ष की उम्र वर्ग के थे। दिल्ली और अरुणाचल प्रदेश में आत्महत्या करने वालों में 55 प्रतिशत से ज्यादा 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के थे। दिल्ली में आत्महत्या करने वाले 110 में से 62 तथा अरुणाचल प्रदेश में आत्महत्या करने वाले 1,477 में से 817 इस उम्र वर्ग के थे। रिपोर्ट के मुताबिक, आत्महत्या करने वालों में 34.5 प्रतिशत की उम्र 15 से 29 साल के बीच थी, जबकि 34.2 प्रतिशत की उम्र 30 से 44 साल के बीच थी। इसके अनुसार, देश में रोज 223 पुरुष और 125 महिलाएँ सभी को जोड़कर 347 पुरूष-स्त्री आत्महत्या करते हैं। इन महिलाओं में 69 घरेलू महिलाएँ हैं। एक दिन में 73 लोग बीमारी के कारण और 10 लोग प्रेम प्रसंग मोहब्बत के चक्कर में आत्महत्या करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में आत्महत्या के मामलों में 1.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2008 में आत्महत्या के 1,22,902 मामले थे, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 1,27,151 हो गए । 2009 में देश में सबसे ज्यादा आत्महत्याएँ पश्चिम बंगाल में हुईं। वहाँ एक साल में 14,648 लोगों ने अपनी जान ले ली। उसके बाद आंध्र प्रदेश का स्थान आता है, जहां 14,500 लोगों ने अपनी जान दे दी। फिर नंबर आता है तमिलनाडु (14,424), महाराष्ट्र (14,300) और कर्नाटक (12,195) का। इन पाँच राज्यों में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या देश में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या का 55.1 प्रतिशत है। दक्षिण भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल को मिलाकर देश में कुल आत्महत्या का 32.2 प्रतिशत इन्हीं राज्यों में होता है। 2009 में दिल्ली में 1,477 लोगों ने आत्महत्या की। वहीं उत्तर प्रदेश में आत्महत्या करने वालों की संख्या काफी कम रही। देश की 16.7 प्रतिशत जनसंख्या वाले राज्य में आत्महत्याओं का प्रतिशत केवल 3.3 रहा। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1999 के मुकाबले वर्ष 2009 में आत्महत्याओं की संख्या में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 1999 में आत्महत्या करने वालों की संख्या 1,10,587 थी, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 1,27,151 हो गई। आत्महत्या के कारणों में पारिवारिक परेशानियां और बीमारियां सबसे ऊपर हैं। देश में 23.7 प्रतिशत लोग पारिवारिक परेशानी और 21 प्रतिशत बीमारियों के कारण आत्महत्या करते हैं। प्यार-मोहब्बत के चक्कर में सिर्फ 2.9 प्रतिशत और दहेज झगड़ों, ड्रग्स और गरीबी के कारण 2.3 प्रतिशत लोग आत्महत्या करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुष सामाजिक और आर्थिक परेशानियों के कारण तथा महिलाएं व्यक्तिगत और भावनात्मक कारणों से आत्महत्या करती हैं।
ये सारे आँकडे भारत अपराध रिकार्ड ब्यूरो से लिए गए हैं ...

"हर समस्या का हल मौत नहीं होता"
"जो हार जाते हैं उनका अस्तित्व नहीं होता"


  लेखक/कवि 
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश

"क्या क्या क्या लिख दूँ"

_"क्या क्या क्या लिख दूँ"_* 

_अब लैला का श्रंगार लिखूँ_ 
 _या धरती का श्रंगार लिखूँ_ 
 _अब पीढा़ की आवाज़ लिखूँ_ 
 _या नदियों की मैं धार लिखूँ_ 
 _इस मिट्टी का मैं स्वाद लिखूँ_ 
 _या मधुशाला का स्वाद लिखूँ_ 
 _ऋषियों का यशगान लिखूँ_ 
 _या नेताओं का हास्य लिखूँ_ 
 _भारत माँ का प्यार लिखूँ_ 
 _या फ़िल्मों वाला प्यार लिखूँ_ 
 _सैनिक का बलिदान लिखूँ_ 
 _या फ़ुल्हड़ता का मान लिखूँ_ 

_अब तुम्हीं बताओ सुनना_ ...
 _क्या है वो ही मैं आवाज़ लिखूँ_ ...

_वीरों का प्रहार लिखूँ या_ 
 _कायरों का आहार लिखूँ_ 
 _कृषकों की पीड़ा मैं लिख दूँ_ 
 _या नेताओं के रौब लिखूँ_ 
 _पीड़िता की आवाज़ लिखूँ_ 
 _या दुष्कर्मी का खौफ़ लिखूँ_ 
 _हाथरस वाली घटना लिख दूँ_ 
 _या प्रियंका की अावाज़ लिखूँ_ 
 _अपराधी के अपराध लिखूँ_ 
 _या अपराधी के सपने लिख दूँ_ 
 _राजनीति का रूप लिखूँ या_ 
 _जनता की चीत्कार लिखूँ_ 

  _अब तुम्हीं बताओ सुनना_ ...
 _क्या है वो ही मैं आवाज़ लिखूँ_ ...

_सूर्य उदय पश्चिम में लिख दूँ_
_या झूठे मैं आख्यान लिखूँ_
_नारी का मैं कवच बनूँ या_
_कवच तोड़ का मान लिखूँ_
_उत्तर में रत्नाकर लिख दूँ_
_दक्षिण में हिमराज लिखूँ_
_झूठे-झूठे लाखों वादे लिख दूँ_
_या सच्चाई मैं एक लिखूँ_
_अपनी कलमधार से झूठ लिखूँ_
_या सच्चाई का प्रवाह लिखूँ_
_नारी का पर्दा मैं लिख दूँ या_ 
_अश्लीलता के चित्र लिखूँ_ 
_अब लेखनी का मैं दर्द लिखूँ_ 
_या उसका भी उपहास लिखूँ_ 
_सत्यमार्ग का गान लिखूँ या_
_डग्गामारू अभियान लिखूँ_
_अंतिम पंक्ति में कहता हूँ_
_मैं सच्चाई के साथ खड़ा हूँ_
_बस सच्चाई का सार लिखूँ_ 

_अब तुम्हीं बताओ सुनना_ ...
 _क्या है वो ही मैं आवाज़ लिखूँ_ ...


_शिवम अन्तापुरिया_