Wednesday, October 28, 2020

पसंद नहीं

किसी मेरी आदत 
पसंद नहीं 
किसी को मैं 
पसंद नहीं 

किसी को मेरा साहित्य 
पसंद नहीं 
किसी को मेरा रहना 
पसंद नहीं 

किसी को मेरी बातें 
पसंद नहीं 

किसी को मेरा काम 
पसंद नहीं 

किसी को मेरी सलाह 
पसंद नहीं 


शिवम अन्तापुरिया

Friday, October 16, 2020

"सच्चा प्रेम विलक्षण"

 "सच्चा प्रेम विलक्षण"

हाँ प्रेम वही रहेगा सच्चा 
बस किरदार बदल जाएँगे 
तुम अपने घर में रोओगे 
हम अपने घर में रोएँगे 

प्रेम बहुत होता है विलक्षण 
ये अब तक जाना है किसने 
तुम अपने घर को जाओगे 
 हम अपने घर को जाएँगे 

प्रेम पात्र के दोनों पुजारी 
  हैं सच्चे-सच्चे मन के 
तुम मेरा रास्ता देखोगे 
हम तेरा रास्ता देखेंगे 

प्रेम नयन ये रहे तड़प हैं 
अब तेरे मिलन के प्यासे हैं 
तुम मुझे देखना चाहोगे 
हम तुम्हें देखते रह जाएँगे 


शिवम अन्तापुरिया 
    उत्तर प्रदेश 

Thursday, October 15, 2020

प्रेम नहीं पहचानेंगे"

"प्रेम नहीं पहचानेंगे"

नाम मोहब्बत का सुनते ही 
   मेरा दिल घबराता है 
याद तुम्हारी आती है 
ये बदन भीग सा जाता है 
सारी रात जागते हैं कोई 
उपचार नहीं मिल पाता है 

तट तटस्थ होकर थक जाते 
ये अश्रु नहीं रूक पाते हैं 
महज़ समाजी ठेकेदारों के 
कारण 
ये प्रेम विलय न हो पाते हैं 

बहुत लहू धाराएँ बहतीं 
बहुत बदन मिट्टी हो जाते हैं 
ये ढाई शब्द का बोझ जरा 
क्यों लोग नहीं सह पाते हैं 

द्वंद्व उठा आरोप लगा 
वो मन ही मन मुस्काते हैं 
जरा प्रेम की बात को लेकर 
वो अम्बार बनाते जाते हैं 

सच्चाई की दहलीजों को 
लोग तरसते जाते हैं 
प्रेम एक ये सच्चाई है 
जिससे लोग मुकरते जाते हैं 

प्रेम जरा भी करना हो तो 
सावधान होकर करना 
प्रेम ग्रंथ के पन्नों में 
इतिहास जरा होगा पढ़ना 

  ये घोर कलयुगी धारा में 
राधा-माधव,मीरा न पहचानेंगे 
जरा सन्देह बेबुनियादी साक्ष्यों से 
तुमको आरोपी बतला देंगे 

प्रेम बिछड़ जो जाता है 
तो मौत नहीं हल होता है 
जरा सब्र रखकर देखो 
सब पहले जैसा हो जाता है 


जरा-जरा सी बातों को क्यों 
दिल पर तुम ले जाते हो 
प्रेम पुजारिन राधा को क्यों 
भूल यहाँ पर जाते हो 


शिवम अन्तापुरिया
   उत्तर प्रदेश

Saturday, October 3, 2020

कुछ सीख तो

उसे आजतक मेरे आने का इंतजार है
अब मेरा भी दिल यहाँ पे बेकरार है


शिवम अन्तापुरिया

    जिंदगी है ये बहुत कुछ सीख देती है 
लेकिन उस सीख का अनुसरण करने वाला भी 
          अर्जुन की भाँति होना चाहिए 
                       ~ शिवम अन्तापुरिया

शहादत से भरी महफ़िल भगत के नाम मैं लिख दूँ 
_जिनसे है मिली आजादी कैसे उन्हें गुमनाम मैं कर दूँ 

शिवम अन्तापुरिया

साहब ! कई ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं 
जो मन को झकझोर जाती हैं 

शिवम अन्तापुरिया


मेरी जिंदगी में सदा वो निशाने रहे 

हाँ वो हमारे हम उनके दीवाने रहे

जिंदगी में थोड़ा सा फ़र्क ये रहा 

वो दिल्ली हम यूपी के दीवाने रहे 

      शिवम अन्तापुरिया


ये जिंदगी जितनी हँसती-मुस्कुराती हुई दिखती है न, क्योंकि अन्दर से उससे कई गुना ज्यादा दु:खी होती है न शिवम अन्तापुरिया

अपनी दीवार पर उसने मेरा फोटो ही टाँगा था_ 
_मगर घर वालों ने दो सूखे फ़ूल का माला भी डाला था_ 

_शिवम अन्तापुरिया

ये जिंदगी एक तन्हाइयों से_
 _भरा हुआ झोला है_
_इसे उठाकर जो चल दिया_ 
_वो चलता ही गया है_ 
_शिवम अन्तापुरिया_


पुरानी यादों के महल आज खाक कर दिए !!

उन्हें जो भी लगता हो हम तो माफ़ कर दिए !!


शिवम अन्तापुरिया

किरणें भी बहुत कुछ सिखाती हैं 
 बस सीखने कला मानव को ही सीखनी होगी  

©शिवम अन्तापुरिया

मेरे खौंफ़ से मेरे दुश्मन खंज़र भोंका करते हैं 
धोखे से भी दुश्मनों की नहीं हम निंदा करते हैं 
भले ही जान ले लें आज ही आकरके वो मेरी 
कभी भी जान की अपनी नहीं हम चिंता करते हैं 

शिवम अन्तापुरिया

अहमियत समझो सभी की

" अहमियत समझो सभी की "

ये जीवन बहुत ही अजीबो गरीब तरीके से पेश आता है आता है सभी की जिंदगी में 
अब बात आती इसे कौन कैसे जीते है 
यही कोई अभी 6 महीने ही बीते होंगे कि वो पल आजतक नहीं भूल पाया हूँ, 
जब उसने अपनी उंगलियों को हिलाते हुए मुझसे कहा था कि चार-चार वो इशारे आजतक मेरी आँखों में सपने की भाँति तैर जाते हैं और मैं वहीं मुद्रा में लीन हो जाता हूँ अब मुझे तो नहीं पता है कि शायद ही उसे वो पल अब तक उसी लहज़े में याद हो ...

खैर कोई बात नहीं मुझे तो याद है 
एक बात और सच है जीवन कि ये जिंदगी में अनजाने लोग अनजानी राह पर मिल जाते हैं और किसी के दिल में कुछ ऐसा छोड़ जाते हैं जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है ।


और वो बस कुछ ही अल्प समय में कल्प समय के लिए बेहद यादगार पलों के वो पौधों को जन्म दे जाते हैं जिनकी जिंदगी बहुत ही अनन्त होती है,
बहुत ही कम समय में ही वो अपनों से भी ज्यादा खास हो जाते हैं जिनका साथ अगर छूटने की नौबत आए तो ऐसा लगता है मानों शरीर से कोई आत्मा को लिर जा रहा है.... 

आज कल सोशल मीडिया का युग है मेरी भी मुलाकात बस उससे व्हाट्सएप के ग्रुप से ही हुई सिलसिला यूँ चला कि दोनों में बेचैनियाँ पनपने लगी एक दूसरे के बिन फ़िर क्या बेचैनियाँ सहना कौन चाहता है आजकल...

 बस बेचैनियाँ खतम करने की जुगत के चक्कर में हम लोग राह भटक कर कहीं और ही आ गए थे जहाँ आना नहीं चाहिए था 
फ़िर भी जहाँ आ गए थे वहाँ से लौटना बहुत ही मुश्किल था 
फ़िर भी रातों दिन की जद्दोजहद के मैं अब तो सब बिल्कुल परेशान था लेकिन मैं उसे बताना नहीं चाहता था कुछ भी क्योंकि इसमें उसकी गलती जरा भी नहीं थी और मैं ऐसे मोड़ पर हूँ जहाँ से मेरे जर फ़ैसले मुझपर भारी पड़ सकते थे 
लेकिन इसी कि कहते हैं सच्चा प्रेम जो अपने साथी ही हर बात को समझे न कि सिर्फ़ अपनी ही बातें उसके सामने रखता है जो उसने बहुत ही अच्छे से कर दिखाया है जिससे मैं खुश भी हूँ और अपने आप निराश क्योंकि शायद कमी मेरी ही थी मैं क्यों नहीं उसके योग्य था अभी फ़िर भी वो मुझे अपने योग्य कहकर मुझे अपनी कमियाँ महसूस नहीं होने देती है मैं क्यों नहीं उसको जितना अन्दर से प्रेम करता हूँ उतना ही ऊपरी सतह से प्रेम कर पा रहा हूँ... 


     लेखक 
शिवम अन्तापुरिया 
कानपुर उत्तर प्रदेश 

सच्चाई न खोजें आप

माफ़ किया

"माफ़ किया"

 _गलतियाँ अपनों की हजारों_ 
 _माफ़ किया करता हूँ_ 
 _फ़िलहाल मैं किसी को माफ़_
_करने के लायक नहीं_
 _फ़िर भी बस जिंदगी के हजारों_ ख्वाब जिया करता हूँ_ 

 _कुछ भी हो तुम्हें तो गलत हम_ _कह सकते नहीं_ 
 _जिंदगी ये कहाँ ले जाएगी इसका_  _तो पता नहीं_
_अभी तो बस अपनी_ _आलोचनाओं को सहा करता हूँ_ 
 _रूठे हुए लोगों की मुस्कान बना_ _करता हूँ_ 

 _मैं नाराज होता ही नहीं तुमसे रूठ_ _कर जाऊँगा कहाँ_ 
 _किसने मुझसे क्या कहा सबको हूँ_  _मैं बताता कहा_ ँ 

 _शिवम अन्तापुरिया_
 _कानपुर उत्तर प्रदेश_