"जीशुक बाबा का जीवन परिचय"
उन्नीसवीं सदी में यदुवंशी क्षत्रिय राजवंश कन्नौज राजघराने से चले श्री माखन सिंह के पुत्र श्री जीशुक बाबा जो उत्तर प्रदेश के ग्राम अन्तापुर पोस्ट हथूमा ब्लाक सन्दलपुर तहसील सिकन्द्रा जिला कानपुर देहात के जंगल के पास रमणीक स्थान है वही पर इनकी समाधी स्थल है,इन्होंने बंगाल में अपनी शिक्षा पूर्ण की जिसके कारण वो कई कलाओं में निपुण थे उनके समय में उनका नाम गंगा जमुना के बीच में प्रसिद्ध था और आज भी है पूरे प्रदेश के लोग उनके दर्शन करने आते हैं श्रद्धालुओं में उनके प्रति आस्था की मिशाल अब भी कायम है जो भी भक्त सच्चे मन से वहाँ समाधिस्थल पर आकर अपनी मन्नत माँगता है वो अवश्य पूरी होती है। बाबा के वंशावली में
श्री जीशुक बाबा के पुत्र प्रेम सिंह,धर्मू सिंह के पुत्र दुलारे सिंह, हरी लाल सिंह के पाँच पुत्र व
दुलारे सिंह के पाँच पुत्र हैं जिनमें रामप्रसाद सिंह त्यागी जी महाराज का कहना की जो भी इस स्थान आकर माथा टेकर जो भी फ़ल की कामना करता है उसे उस फ़ल की प्राप्ति अवश्य होती है।
बाबा के स्थान को "ऊपरहार बाबा" के नाम से भी जाना जाता है सबसे ज्यादा प्रचलित नाम भी "जय ऊपरहार बाबा" है बाबा के स्थान पर तीन समाधियाँ बनी हुईं हैं जिनमें जो बड़ी समाधि के सामने है वो उनके पुत्र की है व उनके बराबर पर बनी समाधि उनके सहपाठी कटियार बाबा की है पास में एक कुँआ भी है समाधि स्थल पर बरगद, पाखर के पेड़ों की घनघोर छाया लोगों का मन मोह लेती है बंगाल से विद्या सीखने के कारण इन्हें बंगाली बाबा भी कहा जाता है।
इनके चमत्कार के उदाहरण बताते हुए लोग नहीं थकते गाँव के लगभग सभी लड़कों का पहला मुंडन संस्कार बाबा के यहाँ ही होता है ....