Friday, July 16, 2021

"स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मी सहगल"

" लक्ष्मी सहगल ने भारत विभाजन कभी स्वीकार नहीं किया "

( लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 को और मृत्यु 23 जुलाई 2012) को डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 1914 में एक परंपरावादी तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था इनका पूरा नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन सहगल था और उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली थी, फिर वे सिंगापुर चली गईं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं थीं।

नेता जी सुभाष चंद्र बोस की अटूट अनुयायी के तौर पर वे इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल हुईं थीं।

सुभाष चंद्र बोस का सहगल पर विश्वास को देखते हुए मैं अपनी पंक्तियों से निवेदित करता हूँ... 

लक्ष्मी का साहस देखकर, सुभाष गए मन मोह ।
फ़ौज सहगल को सौंपकर, जीत समर में होय ।।

हार होय अंग्रेजों की और बजै, देश को डंका ।
अंग्रेज देश को छोड़ चले,अब देश में रही कोई न शंका ।।

कप्तान लक्ष्मी सहगल भारत की अब तक की, सबसे सफल महिलाओं में से एक हैं। लक्ष्मी सहगल ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित ‘आजाद हिंद फौज (आईएनए)’ के लिए अपने हाथों में गन थामी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक शेरनी की भाँति लड़ीं।

लक्ष्मी ने देशभक्ति का पहला पाठ अपनी माँ से सीखा, जोकि स्वयं कांग्रेस पार्टी की एक सदस्या थीं। लक्ष्मी सहगल ने चिकित्सा के क्षेत्र में मद्रास मेडिकल कॉलेज से डिग्री प्राप्त की और एक डॉक्टर के रूप में अपने कैरियर के लिए सिंगापुर चली गईं। हालांकि, यह सब कुछ करना उनके लिए बहुत आसान नहीं था, जिसका वह इंतजार कर रही थी।

उस समय सिंगापुर में अंग्रेजों का शासन था और जब जापानियों द्वारा देश पर आक्रमण किया गया तब उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा था। हजारों भारतीयों को कैदी बनाकर ले जाया गया। इस मौके पर नेताजी ने भारतीय कैदियों को आजाद हिंद फौज (आईएनए) में शामिल करके अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए आमंत्रित किया। लक्ष्मी सहगल उन सब में से एक थी और नेताजी उनके साहस से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और नेताजी ने लक्ष्मी सहगल से रानी झांसी रेजीमेंट का नेतृत्व करने के लिए कहा। लक्ष्मी सहगल बर्मा के जंगलों में अंग्रेजों के खिलाफ एक शेरनी की तरह लड़ी थीं।

जब नेता जी जर्मनी में थे तब 
कैप्टन लक्ष्मी सहगल जी को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की लगभग हर योजना की जानकारी रहती थी जो कि ‘’कैप्टन मोहन सिंह शायद नहीं जानते थे कि नेता जी जर्मनी में क्या कर रहे हैं, मोहन सिंह ने सिंगापुर वाली सभा में कहा कि वे दक्षिणपूर्वी एशिया में जापान के सभी भारतीय युद्धबंदियों को मिलाकर एक आज़ाद हिद फ़ौज बनाएँगे, क़रीब 60-70 हजार सैनिक जमा भी कर लिए हैं जापानी उन्हें टोक्यो भी ले गए हैं वहाँ के प्रधानमंत्री से भी मिलाया यह सब तो किया, लेकिन लिखकर यह कभी नहीं दिया कि हम आपको एक आज़ाद फ़ौज मानते हैं।

आज़ाद हिंद फ़ौज की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को लक्ष्मी सहगल पकड़ी गईं पर बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और कानपुर आकर बस गईं। लेकिन उनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ और वे वंचितों की सेवा में लग गईं। वे भारत विभाजन को कभी स्वीकार नहीं कर पाईं और अमीरों और ग़रीबों के बीच बढ़ती खाई का हमेशा विरोध करती रही हैं।

यह एक विडंबना ही है कि जिन वामपंथी पार्टियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान का साथ देने के लिए सुभाष चंद्र बोस की आलोचना की उन्होंने ही लक्ष्मी सहगल को 2002 में भारत के राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया। लेकिन उन्हें डाॅ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के सामने हार का सामना करना पड़ा ।

 वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।
लक्ष्मी सहगल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उन्होंने सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी में रानी झाँसी रेजीमेंट की कमान सँभाली थी।

कलकत्ता में बांग्लादेश संकट के दौरान शरणार्थियों के लिए राहत शिविर का आयोजन किया कराया और उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद शांति बहाल करने के लिए भी काम किया। बैंगलोर में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के खिलाफ अभियान में भी लक्ष्मी सहगल को गिरफ्तार किया गया था।

सहगल जी को भारत सरकार ने 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया। डॉक्टर लक्ष्मी सहगल की बेटी सुभाषिनी अली 1989 में कानपुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद भी रहीं।
आजाद हिंद फौज की महिला इकाई की पहली कैप्टन रहीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मी सहगल का कानपुर के एक अस्पताल में 23 जुलाई 2012 को निधन हो गया। लक्ष्मी सहगल की हालत दिल का दौरा पड़ने के बाद से गम्भीर बनी हुई थी जिसके चलते आजाद हिंद फौज की कैप्टन रहीं लक्ष्मी सहगल का निधन हो गया है वो 97 वर्ष की थीं।

अस्सी वर्ष तक कप्तान लक्ष्मी सहगल का एक अदम्य दृष्टिकोण रहा और कानपुर में एक पेशेवर डॉक्टर के रूप में कार्य करती रही। लक्ष्मी सहगल इतनी बुजुर्ग होने के बावजूद सेमिनार और सम्मेलनों का हिस्सा लेती रही।

     कवि/लेखक 
शिवम यादव "अन्तापुरिया"
पता - ग्राम अन्तापुर,पोस्ट हथूमा, तहसील सिकन्द्रा,जिला 
कानपुर देहात उत्तर प्रदेश 
मोबाइल न. +91 9454434161, +91 9519094054

Tuesday, July 13, 2021

विश्व हिन्दी सचिवालय, माॅरीशस, आस्ट्रेलिया से

विश्व हिन्दी सचिवालय, माॅरीशस, आस्ट्रेलिया से मिला सर्टिफ़िकेट